साहित्य चक्र

04 January 2020

हे कृष्ण अब तुम्हें आना ही होगा।

हे कृष्ण तुम्हे अब आना होगा
कलयुग को बचाना होगा 
धरा भरा अब अत्याचार का 
समय उचित यह पलटवार का 
किसी द्रोपदी का अब चिर ना हरण हो
सभा में ना दुर्योधन ना कर्ण हो 
विश्व पटल पर हो अनुशासन 
पैदा ना ले कोई और दुशासन
भारत भूमि का गौरव ना धूमिल हो
कुछ ऐसा कर जाना होगा 
हे कृष्ण तुम्हे अब आना होगा
कलयुग को बचाना होगा 


साक्षी है इतिहास बात का 
द्रोपदी के उस चिर आघात का 
प्रतिशोध पांडवो को दिलवाए तुम 
और रो रही थी जब ये असंख्य द्रोपदियां
फिर कहां थे कृष्ण क्यों न आए तुम
बहुत हुआ अनुरोध निवेदन 
अब रौद्र रूप दिखलाना होगा 
अर्जुन के गांडिव की खनक से 
फिर कुरुक्षेत्र दहलाना होगा 
हे कृष्ण तुम्हे अब आना होगा
कलयुग को बचाना होगा 


अबला अगर अकेली हो तो 
शिकार क्यों बन जाती है
पुरुष नहीं वो नपुंशक है
जिसे मां-बहन नजर न वो आती है
तुच्छ तृप्ति की प्राप्ति को 
क्यों मानव दानव बन जाता है
कहो हे कृष्ण क्या "सुदर्शन" का 
क्या उसे तनिक भी भय ना सताता है
उस दानव का वध करने हेतु 
फिर चक्र तुम्हे उठाना होगा 
हे कृष्ण तुम्हे अब आना होगा
कलयुग को बचाना होगा 


मर्यादा पुरषोत्तम की धरती 
क्या अब मर्यादा विहीन हो जाएगी 
सोचा ना था इस देवभूमि पर 
देवियां भी कभी घबराएगी 
जहां देर रात्रि होते ही 
एक लड़की घबरा जाती है 
धिक्कार है वैसे पौरुष पर 
ये कैसी मानव जाति है 
क्या भय ना रहा किसी दण्ड विधान का 
इसका भी अवलोकन करना होगा 
और स्थापित करने अस्तित्व धर्म का 
हे प्रभु तुम्हे अवतरणा होगा 
हे कृष्ण तुम्हे अब आना होगा
कलयुग को बचाना होगा 


कभी नाम अलग कभी धाम अलग 
पर एक हैं ये राक्षस सारे 
अधिकार उसे नहीं जीने का
जो परस्त्री पर हाथ डाले 
क्या शक्तिहीन हो गई भुजाएं 
या रक्तचाप स्थिर हो गई 
जननी वीरों की ये मां भारती
ना जाने कब वीर विहीन हो गई
बहुत हुआ विचार विमर्श अब
अस्त्र शस्त्र सुसज्जित हों 
नाश करने सभी दुरविचार का 
ये मानव  समाज एकत्रित हो
हे प्रभु कहा था गीता में 
हम सब में तुम्हारा अंश व्याप्त 
ज्ञात करा दो इस महाज्ञान का 
सायद यही पर्याप्त है 
बोध कराने इस परंबुद्घि का 
बन गुरु तुम्हे अवतरणा होगा 
हे कृष्ण तुम्हे अब आना होगा
कलयुग को बचाना होगा 


और कितनी निर्भया को 
हालातों पर यों रोने होंगे 
कर हिसाब मुझे बतला दो 
कितनी बहू बेटियां खोने होंगे 
चाह नहीं अब शब्द नहीं की
कुछ और भी अब कह पाऊं मैं
इक्षा प्रचंड बस इतनी सी 
की धरती रक्तरंजित कर जाऊं मैं
मोम नहीं अब मौन नहीं 
तांडव प्रचंड कर जाना होगा 
उस कलपती आत्मा की शांति को 
दानवों का शीश चढ़ाना होगा 
हे कृष्ण तुम्हे अब आना होगा
कलयुग को बचाना होगा 


हे ब्रह्म मुझे बतलाओ आप
ये कैसी आपकी रचना है 
जानवरों से भी जो वेहसी हैं 
क्यों मानव जैसी संरचना है।

                            आनंद सिंह


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