बाग़ कौन संभाले अब माली की कद्र कौन जाने।
सुगंघ भरा आँगन यहाँ , भला अब कौन बुहारे।।
कदम्ब की डाल पर खूब खेले और बढ़े हो गए।
अब बाग में जाएं या घर की जिम्मेदारी निभाएं।।
जिसको अंगुली पकड़कर चलना सिखाया था ।
वही आज बेटा माँ को वृद्धा आश्रम छोड़ आया।।
परिवार उपवन सा अब नहीं दिखता है कहीं भी ।
दादा दादी के लाड़ प्यार को अब कौन पाता यहाँ।।
लूटा सा बाग लगता है संस्कारों का यहाँ दोस्तों।
युवापीढ़ी को देखिए कैसा कैसा शौक लगता है।।
प्यार विश्वास की दौलत नहीं सहेजता आज आदमी।
फिर बाग सी खुशहाली जिन्दगी में कैसे पाएं आदमी।।
डॉ. राजेश पुरोहित
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