साहित्य चक्र

04 January 2020

तमाशा बैठ एक कोने में

माँ 

कुछ देखती है तो कुछ कहती है। 
माँ की आँखो में इतनी गहराई रहती है। 


इस दामन में लिपटकर बहुत सुकून मिलता है। 
क्योंकिं इसमे बहुत नरमाई रहती है। 

मेरी कलम से उतरे ये लफ़्ज़ भी मुस्कान लिए फिरते है। 
क्योंकिं इनमे माँ की परछाई रहती है। 

जन्नत की नींद कहाँ आँखों में रहती है। 
बच्चे की आखिरी ख्वाईश भी माँ की गोद रहती है। 

देखते रहे सब तमाशा बैठ एक कोने में। 
जब कोई ना था साथ तब माँ ही रहती है। 

 चाहत की हर एक किताब मुकम्मल है। 
क्योंकिं मनन  इसमे माँ की दुआई रहती है। 

                                          मनन तिवारी 


No comments:

Post a Comment