साहित्य चक्र

25 January 2020

देश को समर्पित...



क्या  रखा है यारों उस पश्चिम की
 बेशर्म परिपाटी में
उससे  ज्यादा  महक  बसी   है  मेरे 
 हिन्द की  माटी में
जहां आधा मीटर से कम कपड़ा वो
अपने तन पर डालती है
उससे कही लम्बा घूंघट तो यहां बहुए
निकालती है
वहां दारू सिगरेट नारी के मन को अति भाते है
यहां तो इंसान दारू पीकर घर मे मार
तक खाते है
यहां रिश्तो  की  एक अपनी  मर्यादा है
वहां  रिश्ते कम सम्बन्ध हद से ज्यादा है
करता हूँ वन्दन मैं अपने देश की माटी को
दिन रात पूजता रहता हूँ मैं अपने देश
 की परिपाटी को....

                                                 "विपिन प्रधान"


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