साहित्य चक्र

03 January 2020

ममता की मूरत


माँ में बसती है ममता की मूरत,
मायने नही रखती बच्चों की सूरत ।
हो जाए उसके बच्चों को कुछ भी होने का अंदेशा
तो माँ पहुच जाती है तुरन्त ।।




पूरे घर का काम कर फिर परिवार को सम्भालती है,
अपने बारे में जरा भी बिल्कुल न सोच पाती है ।
बहुत संघर्ष करती है वो अपने जीवन मे दिन रात,
और अपने बच्चों के लिए बहुत प्यार लुटाती है ।।


सुबह जल्दी उठ हमे विद्यालय के लिए तैयार करती है,
हर मां अपने बच्चों पर जान छिड़का करती है ।
बच्चे हो चाहे कैसे भी लेकिन,
एक माँ हमेशा अपने बच्चों का भला विचारा करती है ।।


फिर भी बच्चे नही समझ पाते माँ का महत्व,
क्योंकि आंखों पर होती है एक पट्टी सी बंधी ।
सब कुछ लगता है एक नाटक सा उन्हें, 
क्योंकि माँ की ममता लगा देती है पर पाबन्दी ।


माँ के लिए होता है हर बच्चा अनमोल,
उसके लिए प्यार का नही होता है कोई तोल ।
प्रार्थना करती रहती है माँ सदैव बच्चों के लिए,
कि हे भगवान! खुशियो का छप्पर अब तू खोल ।।

                                         गजेन्द्रसिंह राजपुरोहित


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