साहित्य चक्र

27 January 2020

अजय अद्वित वीर मैं


देता चुनौती हूं पवन 
गर कर सको मेरा दमन
लो आज खुद को आजमा
छन एक ना भयभीत मैं
हूं शक्ति का प्रतीक मैं
तेरे वेग से जो ना डरा
सम्मुख तेरे सीधा खरा 
पिया मां का छिर मैं 
अजय अद्वित वीर मै


इन हस्तरेखाओं का क्या विधान है
जब कर्म ही मेरा प्रधान है 
ना भय है अब मृत्यु का 
ना शोकाकुल होता हूं पराजय पर 
चलता रहता हूं प्रतिकूल पथो पर भी
और ढूंढता रहता हूं मैं अवसर 
चाहे बाधाएं विपदाएं  आ जाएं 
होता ना कभी अधीर मैं
पिया मां का छिर मैं 
अजय अद्वित वीर मैं


इन छोटे मोटे परिणामों से 
हूं मैं तो नहीं डरने वाला 
विजय पथ का हूं पथिक मैं
अन्तिम स्वांस तक लरने वाला
मेरे छनिक पराजय पर 
क्यों सब लोग यूं धिक्कारते
हो सिंह जब मूर्छित परा 
मूषक भी हैं ललकारते 
नहीं जानते मैं कौन हूं 
गूंगा नहीं गर मौन हूं 
पिया मां का छिर मैं 
अजय अद्वित वीर मैं


देता हूं चुनौती ऐ पर्वत 
तुम्हे निजशक्ती पर ना गुमान हो 
की आज प्रत्यंक्षा मेरी तन गई 
तुमसे भी मेरी ठन गई 
चुनौती को भी जो दे चुनौती
वैसा हूं रणवीर मै 
पिया मां का छिर मैं
अजय अद्वित वीर मैं 

                                                     अंगत सिंह



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