साहित्य चक्र

04 January 2020

प्यार के छंद



I

मेरी इबादत..!
तेरी मोहब्बत हो गई।
मेरे दिल की हुकूमत..!
तेरे दिमाग की बगावत बन गई।। 

II

ज़रा हल्की-सी नजरें क्या मिली ?
तुम से मोहब्बत हो गई।
देखते ही देखते वो मेरी 
हर रोज की इबादत बन गई।।

III

मैं पागल-सा रहता हूं।
कुछ लोग इसे मेरी कमजोरी समझ बैठे हैं।
माँ कसम लोग अपनी गलती कभी मानते ही नहीं।।

IV

मैं हर किसी से कहता हूं।
मैं राजी-खुसी ठीक-ठाक हूं।।
मगर मेरी बात पर कोई विश्वास ही नहीं करता,
बताओ मैं क्या करूं ?

V

तेरे इश्क का कतरा-कतरा मेरा अश्क बन बैठा है।

VI

जब तुम भलीभांति जानती हो।
खुदकुशी करना गुनाह है, तो
फिर मेरी मोहब्बत का तुम
हर रोज गला क्यों घोटती हो।।


                                   कंचनदीप



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