साहित्य चक्र

27 January 2020

देवी मां तुम आ जाना



नन्ही बेटी कहती है
उम्र से ज्यादा सहती है
करके मासूमों का शिकार
दरिंदे नहीं ले रहे डकार
उसकी लाज बचा जाना
देवी मां तुम आ जाना...


वह रोती है बिलखती है
फिर खुद को ही चुप करती है
सामाजिक बंधन से वो तो
रोज ही तिल तिल मरती है
उसका दर्द मिटा जाना
देवी मां तुम आ जाना...

तुम तो शिव की शिवानी माता
जग की जननी जग की दाता
पालन पोषण करने वाली
जीवन हमको देने वाली
रक्षा का भी भार उठा जाना
देवी मां तुम आ जाना...

रक्तबीज का रक्त पिया था
महिषासुर का शीश लिया था
भक्तों को तुम तारने वाली
तुम ही भवानी तुम ही काली
कलयुग में भी खौफ बता जाना
देवी मां तुम आ जाना....।।

                                ✍️ नीलेश मालवीय "नीलकंठ"


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