आँधियों का दौर है
दिया जलाने की
जहमत कौन उठाये
सब तो सौदागर
बने बैठे हैं यहाँ
इनका मोहब्बत से
परिचय कौन कराये
हर शख्स को अपना
चेहरा प्यारा लगता है
इनको इनके भीतर की
बदसूरती का आईना
कैसे और कौन दिखाये
हर इंसान दिल में नफरत
का बाजार सजाये बैठा है
अब हँसकर गले कौन लगाये
दूसरों की दीवार में कान
लगाये बैठे है सब अब
इनके खुद के घर का स्यापा
कैसे और कौन छुपाये
सबके लफ्जों ने तेजाब पिया है
अब रामायण गीता इन्हे
कैसे और कौन सुनाये
आरती त्रिपाठी
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