निगाहें तक रही है मोल वक्त का देख
ले मैं यहां पीड़ा में तू बेफिक्र अपनों में
सौदा नहीं था एक तरफा निभाने का
मैं पल-पल निहारु तू फिर भी करे।
नज़रअंदाज़ अब नहीं पुकारूंगा
था अधिकार जब रहे खुद में मस्त
रही सांस तो देख लेना रोएंगे लिपट
कर आंखे जो फेरे हुए है अफसोस
करेंगे एक दिन जब वक्त नहीं रहेगा ।
✍️ राज शर्मा
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