साहित्य चक्र

25 January 2020

प्रियतमा



निगाहें तक रही है मोल वक्त का देख
ले मैं यहां पीड़ा में तू बेफिक्र अपनों में
सौदा नहीं था एक तरफा निभाने का
मैं पल-पल निहारु तू फिर भी करे।

नज़रअंदाज़ अब नहीं पुकारूंगा 
था अधिकार जब रहे खुद में मस्त 
रही सांस तो देख लेना रोएंगे लिपट
कर आंखे जो फेरे हुए है अफसोस
करेंगे एक दिन जब वक्त नहीं रहेगा । 

                                                         ✍️ राज शर्मा 

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