साहित्य चक्र

27 January 2020

दूर हो जाता हूँ उनसे




इस दुनिया की भीड़ मे
मुझे खोना नही है,
समूह मे शामिल होकर भी
गुमनाम होना नही है,
विलुप्त हो जाते है जो इस जहाँ मे
अपना अस्तित्व मिटाकर,
दूर हो जाता हूँ उनसे
जिनके विचार इतने हल्के है ll


मेरे विचार मेरे आदर्श
उनके भौड़े विचार आदर्शो को,
सुनकर डगमगा न जाये कहीं
यह सोच , अंदर ही अंदर घुटता रहता हूँ
अपने आदर्शो मे मग्न जीता हूँ,
दूर हो जाता हूँ उनसे
जिनके विचार इतने हल्के है  ll


उनकी तदाद बहुत है
जो मेरी भावनाओ का 
मिलकर हँसी उड़ाएँगे,
मै अकेला हूँ
उनकी हँसी का पात्र ना बन जाऊ,
दूर हो जाता हूँ उनसे
जिनके विचार इतने हल्के है ll


इस जहां मे ही है जीना मुझको
दुष्टों की नही कमी यहाँ,
कुछ सज्जन भी टूट जाते है
बार-बार इनसे धोखा खाकर
जिंदगी से  अलविदा कह जाते है,
दूर हो जाता हूँ उनसे
जिनके विचार इतने हल्के है ll

                      
                                   राजू कुमार चौहान


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