साहित्य चक्र

31 August 2021

प्लास्टिक वरदान या श्राप

प्लास्टिक को मनुष्य एक वरदान समझता है, परंतु प्लास्टिक लगातार मानव के जीवन में जहर घोल रही है। मानव ने जब प्रकृति माता की गोद में आंखें खोली तो उसने अपने चारों ओर खुशहाली, हरियाली, निर्मल जल, स्वच्छ वायु का वरदान पाया था। उसका पेड़- पौधों, फल,फूलों, पक्षियों से एक अलग ही संबंध बन गया था। प्लास्टिक एक कृत्रिम पदार्थ है, जिसका निर्माण पेट्रोकेमिकल से किया जाता है। प्लास्टिक मानव के लिए सबसे उपयोग पदार्थ बन गया है, प्लास्टिक को बेकलाइट भी कहा जाता है।





 मनुष्य प्लास्टिक को वरदान समझते हैं ,परंतु यह एक हानिकारक पदार्थ है ।प्लास्टिक का उपयोग मनुष्य कई प्रकार से करता है इसका एक बार उपयोग करके इसे फेंक देता है ,जिससे पर्यावरण में प्रदूषण फैलता है। हमें पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए प्लास्टिक का कम - से- कम उपयोग करना चाहिए ।हम जितना कम प्लास्टिक का उपयोग करेंगे ,उतना ही कम प्रदूषण  फैलेगा और यह हमारे  लिए बेहतर रहेगा। प्लास्टिक से मनुष्य  के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हमें प्लास्टिक के प्रति जागरूक होकर दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना है।


 प्लास्टिक का आविष्कार सबसे पहले बेकलैंड ने किया ।उन्होंने न्यूयॉर्क में हडसन नदी के किनारे पर एक घर खरीदा था। बेकेलैंड ने अपना समय बिताने के लिए अपने इस घर में एक लैब बनाई थी। उन्होंने सन् 1907 में फॉर्मल डेहाइड और फेनोल जैसे केमिकलो के साथ समय बिताते हुए प्लास्टिक का आविष्कार किया। प्लास्टिक को उन्होंने बैकलाइट कहा था ।प्लास्टिक शब्द लैटिन भाषा के प्लास्टिक्स तथा ग्रीक भाषा के शब्द  प्लास्टिकोस से लिया गया है।


 आजकल प्रत्येक क्षेत्र में प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। प्लास्टिक मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। प्लास्टिक का उपयोग बच्चों के खिलौनों से लेकर रसोई, बाथरूम, इलेक्ट्रिक उपकरणों, एरोप्लेन, कारों, क्रोकरी, फर्नीचर, कंटेनर, बोतले, पर्दे आदि का उपयोग बढ़ गया है। प्लास्टिक का उपयोग सबसे ज्यादा इसके गुणों के कारण हो रहा है,जैसे कि प्लास्टिक हल्की होती है। प्लास्टिक पर जल, अम्ल क्षार का प्रभाव नहीं होता है तथा यह सरलता से साफ हो जाती है। 

देखने में सुंदर लगने के साथ ही इस पर दीमक का प्रभाव नहीं होता है। फर्नीचर बनाने में प्लास्टिक का भी उपयोग किया जा रहा है। हमें ज्यादा से ज्यादा कोशिश करनी चाहिए कि हम प्लास्टिक का कम- से -कम उपयोग करें। प्लास्टिक का उपयोग करने के नुकसान भी हो रहें  है। प्लास्टिक का उपयोग करने से हमारे पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। प्लास्टिक कचरा हमारे पर्यावरण के लिए एक गंभीर संकट बन चुका है। प्लास्टिक के रंगीन थैलों का सबसे ज्यादा उपयोग किया जा रहा है।

इन  थैलों में  ऐसे रसायन होते हैं, जो जमीन में पहुंच जाते हैं और इससे मिट्टी को नुकसान होता है। जबकि मिट्टी हमारे लिए बहुत उपयोगी है। प्लास्टिक को रि-साइक्लिंग करने के दौरान उत्पन्न होने वाला धुआँ वायु प्रदूषण फैलाता है। यह धुआं हवा में मिलकर हमारे सांस  द्वारा शरीर में पहुंच जाता है और अनेक बीमारियां उत्पन्न करता है जो हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक है। जल मानव जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण पदार्थ है, परंतु हम प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का उपयोग करके उन्हें पानी में बहा देते हैं। यदि जल नदियों, समुंदरों, तालाबों, में मिल जाता है। जिससे जल प्रदूषण होता है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए ।

प्रदूषित जल और वायु का उपयोग करने वाले वनस्पति फिर उसका सेवन करने वाले पशु पक्षी भी दूषित हो रहे हैं। प्रदूषण ने सारे जंतुओं के भोजन को भी प्रदूषित कर दिया है। प्लास्टिक से खाद्य प्रदूषण भी हो रहा है। प्लास्टिक हमें हर प्रकार से क्षति पहुंचा रही है। प्रदूषण को कम भी किया जा सकता है । हमें प्लास्टिक को इधर-उधर नालियों ,नदियों ,सड़कों पर नहीं  फेंकना चाहिए । 

हमें अपने आसपास सफाई रखनी चाहिए । हमें प्लास्टिक के थैलों की जगह कागज , कपड़े ,चमड़े के थैलियों का उपयोग करना चाहिए । हमें प्लास्टिक का प्रयोग करने के बाद उसे कहीं ना फेंक कर किसी गड्ढे में दबा देना चाहिए। प्लास्टिक को नहीं जलाना चाहिए। वायु प्रदूषण कम से कम करना चाहिए। फैक्ट्रियों से निकलने वाले गंदे जल को नदियों में नहीं फेंकना चाहिए। हमें अपने आप को जागरूक करने के बाद लोगों में प्लास्टिक प्रदूषण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करनी चाहिए। ताकि इसके प्रति सतर्क रहें और प्लास्टिक से पर्यावरण को प्रदूषण ना करें। 

धीरे-धीरे यह मानव जीवन को निकलने के लिए बढ़ती आ रही है। यही प्लास्टिक प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं किया गया तो प्लास्टिक  मनुष्य शुद्ध वायु, स्वच्छ जल, पेड़ पौधों और हरियाली को देखने के लिए तरस  जाएगा। प्रशासन और जनता दोनों के प्रयासों से ही प्लास्टिक से मुक्ति मिल सकती है। एक स्वस्थ और स्वास्थ्य कार विश्व  में रहना है तो प्रदूषण से लड़ना ही होगा।


                                               संजना 


29 August 2021

रूह में बसता देश मेरा



बैठे हैं  वतन से  दूर  बहुत  दुनिया के किसी  कोने में,

वतन  के लिए  हर  पल  धड़कता  है  दिल  सीने  में। 


देश  मेरा  है  किसानों  का,

गेहूँ  , ज्वार , बाजरों  का।


मिश्री  से   मीठे  गन्नों  का,

सोने   सी  पीली  सरसों का।


ये  देश  है  वीर  जवानों का,

जहाँ  मिलता  मेहमानों को दर्जा भगवानों का।


विश्व   में   सबसे   ऊँचे   पर्वतों  का ,

मेरा  देश  है  प्राचीन  और  अद्भु इमारतों का 


आम  के  पेड़ों पर  कुहकती  कोयलों का,

बागों   में   नाचते  मोरों   का


मंदिर  मस्जिद  गिरजा  गुरुद्वारों का,

होली  ईद  दीवाली  बैसाखी  से त्योहारों  का।


रेगिस्तान  में  उड़ती  धूलों  का,

हँसी   से    झड़ते   फूलों   का।


बलखाती  बहती  नदियों  का,

बच्चों  से  चहकती  गलियों  का।


भोले  दिल  मनमोहक  मुस्कानों का,

दूध - दही  से  भरे  पैमानों का


चंचल  हिरण , शेरहाथी,  बाघों का,

देश है  मेरा राखी के  मज़बूत धागों का।


फूलों  से  भरी  क़तारों का,

नभ  को  चूमते  चिनारों का।


उद्योगों  के  शहनशाहओं का,

रिलायंस ,टाटा ,बिरला का।


विचारों  के  धनियों  का,

प्रेम चंद  ,प्रसाद ,निराला  का


ये  देश  है  बुद्ध , नानक , रा  का,

बाँसुरी   बजाते  शाम  का।


पटेल , शास्त्री , अटल , मोदी  का,

प्राणों  से प्यारी  भारत माँ  की गोदी का। 


रूह  में  बसता  देश  मेरा,

सब  देशों  से  प्यारा  देश  मेरा  



                                    इंदु नांदल




एक कहानीः मदद !


आज भी वो पुलिस अंकल बेचारे गरीब की कमाई पर अपना हक जता गए। आखिर कितना कमा लेता होगा वो बेचारा क्या उसके कमाई से उसका घर परिवार चल जाता होगा जहाँ तक मैं सोच रही हूँ हमारे एक दिन का खर्चा उसके दिन भर की मेहनत की कमाई होगी वो बेचारा गरीब अपने बच्चो को पढ़ाता कैसे होगा 12 वर्ष के छोटी सी बच्ची के छोटे से मन में ढेरों सवाल चल रहे थें एक अच्छे बड़े परिवार की बड़ी ही दयालु व अच्छे स्वभाव की लड़की थीं पूजा।



जब भी कुछ सोंचती अच्छा ही सोचती सबकी लाडली और सबके दिल पर राज करनें वाली लड़की थी पूजा वह किसी का भी दुःख नहीं देख सकती थी और जितना हो सके उतना दूसरे की मदद के लिए आगे रहती। वो करीब 8 वर्ष की थीं घर से निकलते ही सामने चौराहे पर वह अक्सर एक गरीब को अपने पुराने से ठेले में बहुत सारी बच्चो के खाने पीने की चीजें बेचते हुए देखती थीं और वो भी कई बार उस ठेले वाले से अपने लिए मीठी गोलियाँ ओर पपड़ी लेकर खाती थीं वह ठेले वाला भी उसे पहचान गया था क्योकि वह उसकी रोज की ग्राहक थीं जिस दिन वह नहीं आती तों उसे ऐसा लगता जैसे उस दिन बिक्री हुई ही नहीं है।

वैसे तो सारे बच्चे बड़े शौक से उसके पास से खाने की चीजें लेते थे।उसकी दिनचर्या चल सके शायद उसकी कमाई वैसे हो ही जाती थीं ।पूजा को यह सब देखते पूरे 4 वर्ष हो गए थे और पूजा ने ऐसा शायद ही कभी उस ठेले वाले के पास समान न खरीदा हो वह उसका रोज का काम बन गया था पूजा देखती थीं कि कैसे वो गरीब ठेले वाला एक एक पैसे की गिनती करता और जेब में रखता था।


पूजा को उसके ऊपर बहुत दया आती थीं और वह उस पर गर्व भी करती थी उसकी मेहनत देखकर लेकिन वह वो पुलिस अंकल से बहुत परेशान थी हफ्ते में दो दिन वह उसकी पूरी कमाई ले जा लेता पूजा को यह सब बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। एक दिन पूजा अपनें पापा रोहित को ये सब बातें बताती है ।रोहित जो कि पेशे से कलेक्टर था।


यह सब बातें सुनकर उसे भी बहुत बुरा लगता है बेचारे उस गरीब के लिए रोहित अपनी बेटी पूजा से कहता है पूजा बेटा हमें उस गरीब की मदद करनी चाहिए जी पापा जी पूजा चहकते हुए कहती हैं ।


रोहित अपनी बेटी का दरियादिली देखकर पीठ थपथपाता है और शबासी 
देता हैं और कहता है मुझे तुम पर नाज हैं पूजा बेटी। गरीबों के लिए तुम्हारी सोच और इतने अच्छे विचार देखकर आज मैं बहुत प्रसन्न हूँ।


तब पूजा कहती हैं तो फैर पापा अब आप बताओ कि वो गंदे पुलिस अंकल को सजा मिलेगी ना। बिल्कुल बेटा, रोहित अगले दिन ही पुलिस वाले को पकड़कर उसे गरीबो को परेशान करने के जुर्म पर सजा देता है और कहता है कि तुमने बेचारे उस ठेले वाले को बहुत परेशान किया है तुमने उसके पास से जितना पेसा लिया हैं वो सबका तुम उसके लिए समानो से भरा एक नया ठेला लाकर उसे दोगे।


और आगे से फिर कभी किसी गरीब को परेशान नहीं करोंगे। वह पुलिस वाला कान पकड़ कर माफी मांगता है ओर जी सर बोलकर निकल जाता है। वह उसी दिन समानो से भरा नया ठेला  लाकर उस गरीब आदमी को देता है ओर उसे माफ़ी मंगता हैं।


वह ठेले वाला पूछता है कि आखिर आपका ह्रदय परिवर्तन कैसे हुआ साहब। तो वो पुलिस वाला कहता है अरे वो तुम्हारे पास वो कलेक्टर की बेटी समान लेने आती हैं ना कौन साहब आप पूजा बिटिया की बात कर रहे हैं क्या ?

साहब बड़े ही नेक दिल बच्ची हैं वो पुलिस वाला खीझते हुए हाँ-हाँ वही उसने अपने पापा से डपट लगा दी मेरी फिर साहब फिर क्या यही कारण हैं मेरे ह्रदय परिवर्तन का, वो गरीब ठेले वाला उस कलेक्टर और पूजा बिटिया का बहुत बहुत आभार प्रकट करता है।


और खुशी-खुशी अपना नया ठेला अपने घरवालों  को देखाने ले जाता है।पूजा दूर खड़ी हो सब देख रहीं होती हैं और घर आकर ख़ुशी से झूमने लगतीं हैं। अपने की करो या पराये की खुशी तो किसी की मदद करने से ही मिलतीं हैं।



                              निर्मला सिन्हा




सुंदर कृष्ण भजन




कान्हा रे मेरे घर आना
आके दरस दिखा जाना
तेरे दर्शन को व्याकुल नैना
नैनों की प्यास बुझा जाना
कान्हा रे...................
      
             युग-युग से तेरा ध्यान धरुँ
             तेरा सुमिरन दिन रैन करुँ
             कान्हा अब न देर लगाना
          संग में राधारानी को लेके आना

कान्हा रे मेरे घर आना
आके दरस दिखा जाना.....
       
          तेरे चरणन् में मस्तक धरुँ
          जोगन बन इत-उत मैं फिरुँ
          सुन कान्हा अब न तङपाना
          साथ में मुरलिया लेके आना
कान्हा रे मेरे घर आना
आके दरस दिखा जाना........

          तेरे दर्शन को मैं मंदिर आई
         तुझको कान्हा पर देख न पाई
         आश मेरी अब टूटती जाए
         जीवन की डोर छूटती जाए
कान्हा रे मेरे घर आना
आके दरस दिखा जाना.........

           सुन कान्हा मेरी एक विनती
          दो दर्शन मिल जाए मुक्ति
          विनती मेरी तुम सुनते जाना
        आके युगल छवि दिखलाना
कान्हा रे मेरे घर आना
आके दरस दिखा जाना
तेरे दर्शन को व्याकुल नैना
नैनो की प्यास बुझा जाना
कान्हा रे..............
             

                                          कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'


कविताः राधा-कृष्ण प्रेम



राधा कृष्ण का प्रेम

प्रीत की रीत ऐसी लगी कान्हा,

अब छूटे से न छूटेगी। 


मैं  दुनिया के हर सुख दुःख भूली, 

कृष्ण अब तेरा ही सहारा है। 


दुनिया में प्रेम की कमी हो गयी, 

कृष्ण तुम वापस आ जाओ। 


हम तुम से ये विनती करते है,
राधा के पास आ जाओ। 


 कृष्ण का प्यार अमर है, 

राधा ने दिल  का नज़राना भेजा है। 


दही मिश्री तुम्हे बुलाती है ,

बासुरी की धुन याद दिलाती है। 


वन वन हम भटक रहे है, 

तुम गाय चराने  आ जाओ, 

राधा तुम्हारी राह देख रही है। 


उसकी पास तुम आ जाओ, 

राधा को कृष्ण की यादो ने घेर लिया, 

तुम उसके सपने सजा जाओ।। 


                                            गरिमा 


अद्भुत भक्ति, जन्माष्टमी विशेष "आध्यात्मिक"


आज नन्दलाल का जन्मदिन फिर से आ गया, चारों ओर खुशियाँ ही खुशियाँ, वातावरण भक्तिमय, सभी अपने कृष्णा को मनाने में मशगूल, नन्हे नन्हे ग्वाल बाल अपनी मस्ती में मस्त, कान्हा की छवि सबमे बस जाती हैं, बाल अवस्था बच्चे में, सारे बच्चे यशोदा मैया के लल्ले जैसे नजर आते है, सारे युवा, राधा के कृष्णा हो जाते है! बस सब ओर खुशियाँ ही खुशियाँ।






नन्दघर आंनद भयौ जैय कन्हैया लाल की, धुन स्वरलहरिया वातावरण में में गूंजती है तो, ऐसा महसूस होता है! सच में गोकुल वृदांवन बन गया हमारा देश, सभी भक्त चरमपूर्ण भक्ति से ओतप्रोत हो जाते हैं।


उस नंदकिशोर की दीवानी सारी दुनिया है, जाने कितने नाम, सबकी सारी पीर हर लेता है वो एक मुस्कान से, बस एक बार उसे महसूस करो, उसे कही ढूंढने की जरूरत नही, वो खुद आ जाता है ह्दय में, सभी के कष्टों को हरने वाला गिरधारी, मोहन मुरलीधर, उसके चाहने वाले, आदि से अंनत तक है! उसकी वजह से संसार रूपी भवसागर पार कराने वाला प्रेम जीवंत है! कितनी ही गोपिया दीवानी थी! पर वो तो राधा के दीवाने थे।


एक अद्भुत अमिट प्रेम, राधाकृष्ण "हर साँस में बसा प्रेम, अनंत कहानियाँ, एक प्रेम कहानी, एक और प्रेम दीवानी, गोपी, जो कृष्ण प्रेम मे इतनी सुधबुध खोई, की खुद, कृष्णा उसे नजर आते, दुनिया के ताने, पर अधरों की मुस्कान कभी न खोयी, सुशीला नामक युवती , राधा न मीरा, दोनो का समावेश, कृष्ण से अगाध प्रेम, विश्वास, सबने बहुत समझाया, वो कल्पनिक है, पर वो न मानी, उसकी हठ उसकी जिद अपनी सुधबुध खो बैठी "नित सिंगार करती, राधा जैसा पर राधा से विपरीत, सुरमा आंखो के बजाय होठों पर लगा लेती, लाली गालो पर, बावरी थी प्रेम में, घर वालों ने उसका विवाह करवा दिया, पर वो न बदली, सासू माँ समझा समझा कर हार गयी, पति ने सारे वैद्य हकीम से इलाज करवा डाला पर कुछ न बदला" समय के साथ  वो कृष्णमय होती गयी, और कृष्ण में समा गयी, ऐसी होती है प्रेमभक्ति, प्रभु मिले या न मिले, खुद को उनको अर्पण कर दो, उनका कोई रुप नही फिर भी , हम उनका रूप खुद ही निर्मित कर लेते हैं, और उन्हे जीवंत कर लेते है।

 
हर रुप में, जिस रूप में नजर आये, उन्हें उसी रूप में अपना लो, वो हमारे अंदर है, ग्वाल बाल हर रूप उनका "तभी तो हर्षोंउल्लास के साथ हम सब मनाते है उनका जन्मोत्सव, मटकी फोडी जाती है, उनके माखनचोर , रूप को याद करने के लिए, कितने सरल है माखनचोर, हर रूप में लुभाते है, सृष्टि के पालनकर्ता, सबके ह्रदय में विराजमान गिरधारी, बनवारी, हाथी घोडा पालकी जय कन्हैया लाल की, हम सबकी ओर से जन्मष्टमी की शुभकामनाएँ कृष्णा।


                                                 रीमा ठाकुर



ज़िन्दगी में कुछ भी हो सकता हैं



डर मत डट कर सामना करना हैं
सबको साथ मे लेके चलना हैं
तू चलता जा हिम्मत रख
ज़िन्दगी मे कुछ भी हो सकता हैं
 
दुःख का समय बीत जाएगा
सुख से कब मिल जाएगा
अँधेरे के बाद उजाला हो सकता हैं
तो ज़िन्दगी मे कुछ भी हो सकता हैं

कुछ ना कुछ कर्म करता जा
कुछ ना कुछ धर्म करता जा
गांव मे जन्मा शहर मे शाही बन सकता हैं 
ज़िन्दगी मे कुछ भी होसकता हैं

परमेश्वर का ध्यान कर एकाग्रता आएगी
खुद पर विश्वास रख समग्रता आएगी
बिन मांगे इतना कुछ प्राप्त हो सकता हैं
तो ज़िन्दगी मे कुछ भी होसकता हैं


                                              सोनिका गुप्ता


हिंदी कविताः रक्षा बंधन

सदियों से
रक्षाबंधन का पर्व
जात-पांत से ऊपर उठकर
पुनीत पर्व को मनाते हैं ।

राष्ट्रहित में
समाज के हर वर्ग के लोग
हिल मिल कर
इस पर्व को मनाते हैं

बहनें अपने भाइयों की
कलाई पर
राखी का धागा बांध
पवित्र पर्व मनाते हैं ।

भाई से ये कामना करती हैं
संकट की घड़ी मे
जब भी होती है  बहन
याद दिलाने को यह पर्व मनाते है ।

रक्षा भाई करेंगे ,इतिहास गवाह है
रानी कर्णावती ने हुमायूँ को
राखी भेजी थी पर अपवाद साबित हुआ ।
बहन -भाई यह पर्व संकल्प के रूप में मनाते है।

यह पर्व भाई बहन के
पावन पवित्र बंधन को
उनके प्यार को अक्षुण रखता है
यह पर्व धागे को प्रतीक मान मनाते है।


                                                       मईनुदीन कोहरी


ऐसी बहनों की कौन सुनें ?

रक्षाबंधन के अवसर पर
असमंजस में रहती हैं वो स्त्रियां
ब्याही गई हैं जो किसी बड़े घर में,

राखी बांधने जाना है उनको भी
लेकिन क्या करें वो जब
घर के कार्यों को देखते हुए सास-ससुर
खुले मन से मायके जाने की
उनसे बात ही न कहें,

अगर चली ही जाएं 
तो राखी बांधने के लिए घर आने वाली
पति की बहनों की खातिरदारी का
इंतजाम कौन करे?

मायका हो नजदीक अगर
तो घंटा दो घंटा जल्दबाजी में जाकर
काम निपटाने की वो कोशिश करें,

लेकिन हो मायका जो दूर उनका तो
हो सकता है रक्षाबंधन का उनका त्यौहार
बहुत बार की तरह इस बार भी
डाक से राखी भेज कर
या फिर फोन पर ही किसी दूसरी बहन को
राखी बांधने के लिए बोल कर ही मनें।

                                                         जितेन्द्र 'कबीर'


कविताः "खुद की तलाश"



न जाने हम कहा खो गए थे
मिल ही नहीं रहे थे
यहां वहां जाने कहां कहां ढूंढा
फिर जाकर मिले हम खुद से
जब हम आइने के सामने आ गए
कभी फुर्सत मिली ही नही थी
खुद को निहारने की
पर आज हम ने खुद को देखा
कहा से कहा आ गए हम
दिन बीते महीने साल गुजर गए
सब कुछ बदल गया था
पर हमारे ख़्वाब अभी भी
पलकों पर बसे थे
उतार लिया फ़िर से हमनें
उन्हें अपनी नजरों में
फिर उन्हें सजाया संवारा
और निकल पड़े
उन्हें पूरा करने के लिए
नई राह पर


                                  डॉ. सपना दलवी