साहित्य चक्र

13 March 2021

शहीद उधम सिंह जी का बदला



कुछ काले दिन इतिहास में ऐसे होते हैं जिनको हम चाह कर भी नहीं भुला पाते, ऐसा ही एक भयावह दिन था 13 अप्रैल 1919 असंख्य लोगों ने अपनों को खोया और वह जख्म आज तक नहीं भरे। मगर एक देशभक्त बच्चा ऐसा भी था जिसने यह सब चुपचाप सहना स्वीकार नहीं किया, वह कोई और नहीं बल्कि शहीद उधम सिंह जी थे।


वैसे तो स्कूल के समय में जलियांवाला बाग देखने का अवसर मुझे मिला है। बचपन में माता-पिता के साथ भी गए, लेकिन उस भीड़ भाड़ में चलते-चलते भागते दौड़ते। 2016 साल था जब हम परिवार के साथ जलियांवाला बाग देखने गए थे और ठीक मार्च में उन्हीं दिनों वहां उधम सिंह के बारे में पूरी जानकारी मुझे जलियांवाला बाग में पढ़ने को मिली, सारे डाक्यूमेंट्स सब कुछ  रखा हुआ है।  कैसे वह पढ़ रहे थे, लंदन जाने के लिए पैसे बचा रहे थे, कहां-कहां नौकरियां की कैसे-कैसे गए इत्यादि सब कुछ।


बचपन में बच्चों को अवश्य ऐसी जगह पर ले जाना चाहिए ताकि उनको प्रेरणा मिले लेकिन मेरा अनुभव है कि एक बार बड़े होकर हमें जरूर जाना चाहिए ताकि हम बहुत कुछ जो छूट गया था उसे दोबारा से सीख सकें।


क्या कोई कल्पना कर सकता था कि शहीद उधम सिंह जी जो स्वयं एक अनाथ थे, उन्होंने हजारों अनाथ हुए बच्चों का बदला लिया होगा। बड़े होकर क्या एक अनाथ बालक के लिए यह संभव था कि देश स्वतंत्र भी नहीं था और वह लंदन में पहुंच जाए।


आप जानते हैं कि शहीद उधम सिंह जी ने जब यह जलियांवाला कांड अपनी आंखों से देखा था तो वह बहुत छोटे थे और इस छोटी सी उम्र में उन्होंने ठान लिया था कि वह बड़े होकर इसका बदला जरूर लेंगे। अब इसके लिए उन्होंने क्या कुछ नहीं  किया होगा। जी तोड़ मेहनत की खुद को पढ़ाया, लिखाया, नौकरी की यहां वहां जहां मिली और सबसे बड़ी बात बदले की वही आग, वही देशभक्ति सालों-साल उनके हृदय में जलती रही।


जीवन में कितना ही बड़ा दुख क्यों ना हो हम अपना ही दुख भूल जाते हैं समय के साथ। जनरल डायर को मारना है उनके जीवन का उद्देश्य था। 1934 में वह लंदन जाकर रहने लगे पढ़ाई-लिखाई के लिए और 13 मार्च 1940 को 'रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी' की लंदन के 'कॉक्सटन हॉल' में बैठक थी। इस बैठक में डायर को शामिल होना था। शहीद उधम जी भी वहां पहुंच गए। जैसे डायर भाषण के बाद अपनी कुर्सी की तरफ बड़ा तो उधम सिंह जी ने किताब में छुपी रिवाल्वर निकालकर उस पर गोलियां बरसा दी और उसकी मौके पर मौत हो गई। वहीं खड़े रहे भागे भी नहीं, जैसे उनके जीवन का यही एक मकसद था और कुछ हमको चाहिए ही नहीं और उन्हें पकड़ लिया गया। मुकदमा चला था और 31 जुलाई 1940 को शहीद उधम सिंह जी को फांसी दे दी गई। ऐसे थे हमारे भारत मां के सपूत जो शहीद होकर भी लोगों में देशभक्ति की ज्योति जगा गए। 13 मार्च के ऐतिहासिक दिन पर शहीद उधम सिंह जी को कोटि-कोटि नमन...।



वंदना शर्मा




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