साहित्य चक्र

27 March 2021

होली.... टेसू के फूल



पलाश के फूलों से
 वसंती हुई धरा
होली के रंगों से 
मन मेरा है रंगा...
दहकते शोलों का रंग टेसू में....
इसीलिए ही प्रकृति ने है भरा....
अगन सी कोई रह- रह कर..
दिल में लगा रहा ....
प्रीत की उमंगो ने फिर से 
हिय को हसीन यादों से भरा....
 रंग सिंदूरी वो नेह का
फुआर सा बन....
 सपनों पर बरस रहा...
आज फिर हौले से टेसू ने 
तन -मन को है छुआ...
कोई तो पाती है लिखी है 
प्रियतम ने अनोखी सी...
अप्रतिम नयनाभिराम से 
गहरे सिंदूरी पलाश पुष्पों पर...
इसीलिए  हर बार
 इनमें रंग प्यार का ही खिला...
 हो कर पल्वित बिखेर देते
 रुमानियत सी....
चहुँ ओर..
  बेचैन सबको देखो ना टेसू ने 
कितना  है कर दिया...
सिंदूरी रंग चुरा कर फलक से 
पलकों पर सजा दिया...
 पलाश की महक अनूठी
उसपर रंग गहरा उसका 
अनूठा सा आभास दे रहा 
फागुन के रंग मानो....
इन टेसुओं से ही तो
 गुलजार  है हुआ...
सुरमई सा सिंदूरी रंग ये..
लवों पर सभी के..
मुस्कान मिश्री सी घोल रहा 
सरगम  कोई अनजान सी
 धड़कनो में ये ऊँडेल रहा .
मन के तारों में गीतों की
झनकार मधुर छेड रहा 
हाँ रंग होली के...
पलाश की तरह ही 
 अगन सी कोई 
हिय में सुलगा रहा 

                              पूजा नबीरा


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