जीवन की कसौटी सत्य की अग्नि में जलकर कांतिमय होकर देदीप्यमान होना है। जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण,दर्शन,उद्देश्य एवं उपादेयता का जीवन पर्यंत बोध नहीं हो पाता जन्म के समय की मौलिकता जीवन के अस्ताचल तक अनेक विद्रूपताओं का आवरण ओढ़कर अपना वास्तविक स्वरूप को देती है। सुपरिचित लेखिका सुरभि रैना बाली का कहानी संग्रह "जीना इसी का नाम है" 13 कहानियों का संग्रह है जो जीवन समाज और परंपराओं की ऐसी त्रिवेणी है जहां जिजीविषा जन्म लेती है और जीने की असंख्य संभावनाएं मन के क्षितिज पटल पर उभर आती है।
कहानी संग्रह की पहली कहानी "वैराग्य" में पाखंड पर कुठाराघात कर अपने अंतस्थ में सन्निहित सामर्थ्य को तलाशने का संदेश दृष्टिगोचर होता है। कहानी में आज के तथाकथित वातानुकूलित आश्रमों के स्वामी भगवा वस्त्र धारी बाबाओं के द्वैत रूप व पाखंडो का पर्दाफाश किया गया है।मुक्ति व शांति के नाम पर भगवा धारी बाबा चारित्रिक दृष्टि से कितने गर्हित कार्य करते हैं इसका सटीक चित्रण कहानी में बखूबी किया गया है। सम्बल कहानी में मानवीय रिश्तो की पर वास्तविकता और रिश्तो के दरकते धरातल का चित्रण है। इस कहानी में पारस्परिक विश्वास और प्रेम की कड़ियों के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को दर्शाया गया है। "आक्रोश" कहानी में लड़की के विवाहोपरांत पिता के घर त्याग के दारूण बुक की सशक्त अभिव्यक्ति है।यह लड़की का प्रारब्ध है कि उसे ना चाहकर भी पिता का साया छोड़ना ही पड़ता है।"आक्रोश" कहानी में लड़की के पराए धन की विडंबना का सजीव चित्रण उसकी मनोदशा का आईना है।मां बाप के घर में पलने बढ़ने के बाद विवाह बंधन की घटना लड़की के पुनर्जन्म जैसी होती है।नये वातावरण में ढल जाना निजता की पुनः प्रतिष्ठा और नये रिश्तो की बंदिशे,कितना कुछ कह जाती हैं लड़की?आक्रोश में एक शिक्षित व संवेदनशील युवा लड़की के मन में दूसरे के विवाह में नारी की व्यथा का निरूपण हृदय ग्राही है। जड़ों से रिश्ते तोड़ कर नई जड़ों को तलाशना लड़की की त्रासद नियति ही तो है। सुरभि रैना बाली के पात्र सहज ही हमारे आसपास उभरने लगते हैं। आज के उपग्रह युग में मानवीय रिश्तो की गरिमा का ह्रास जग जाहिर है। रिश्ते चाहे दो दिलों के संयोग के हो या सामान्य, भीषण परिवर्तन आज देखने को मिलता है। भावनाओं का अवसान और गहरी शानो शौकत को महत्व यही रिश्तो की कसौटी रह गई है।
"लक्ष्मण रेखा" में दो चाहने वालों के बीच भावनाओं के सम्मान का ऐसा संयोग दिख पड़ता है कि जिस्मानी वासना का अस्तित्व ही लुप्त प्रतीत होता है। सच भी यही है कि पारस्परिक भावनाओं के एकाकार में प्रेम शाश्वत हो जाता है।जबकि जिस्म के आकर्षण की वासना तो क्षणिक है। लिखिका ने सुघड़ पटकथा के माध्यम से रिश्तो की मर्यादा को आज के असंस्कृत परिवेश में प्रतिष्ठित करने का सार्थक प्रयास किया है। जब संस्कार मरते हैं तो मानवता गिरती है और रिश्ते कलंकित होते हैं। आज शिक्षक और शिक्षार्थी का रिश्ता यांत्रिक है न बच्चों का शिष्ट व्यवहार और न ही शिक्षक के प्रति सम्मान का भाव।
"यह वह मंजिल नहीं" कहानी में गुरु-शिष्य के बदलते संबंधों का ऐसा ताना-बाना है कि गुरु अच्छे शिष्य की खोज में थक जाता है। वह अपने वर्षों से अर्जित ज्ञान से बच्चों के भविष्य को तराशना चाहता है परंतु कुछ अशिष्ट बच्चे/शिक्षक के उपकार का अपमान कर उसके लक्ष्य को कुंठित कर देते हैं।हमारे समाज के संम्भ्रान्त परिवार के बच्चों की उच्छृंखलता पूरी शिक्षा व्यवस्था को कैसे रुग्ण बना देती है यही चित्रण इस कहानी को आज के डांवाडोल परिप्रेक्ष्य की खामियों को रेखांकित करता है। सच्चाई यही है कि आज शिक्षा को शिष्टता का लाने का सम्बल नहीं माना जाता बल्कि जनार्दन का सम्बल माना जाता है।
विडम्बना कहानी रक्त रिश्तो के कमजोर होते सूत्र को मनोविम्बित करती है। एक मां यौवन
में वैधव्य का दंश झेलते हुए बच्चों के करियर की इमारत खड़ी करती है। परंतु जब संतान अपने रक्तिम रिश्तो की उपेक्षा कर अपने परिवार की स्वार्थ सिद्धि में अंधी हो जाती है तो वहीं रिश्तो वह कृतज्ञता की मौत हो जाती है। मां-बाप का बलिदान कैसे संतान भूल जाती है यही विडम्बना कहानी में सजीव रूप से चित्रित है। आज के इस युग में हम धर्म के पाखंड के दुष्चक्र में फंसे हैं। मुक्ति और मानसिक शांति का प्रलोभन लोगों की सुकोमल भावनाओं से खेलते धर्म के ठेकेदारों ने कैसे धन वैभव के महल खड़े किय हैं यह तो जगजाहिर है। "समाधि" कहानी में धर्म के सत्ताधीशों के कलुषित कार्मो की पोल खोली गई है।
"बलात्कार" कहानी में मानव की वाश्विकता का चित्रण उद्धारणीय है। बलात्कार की शिकार लड़की अथवा महिला की मानसिक वेदना और समाज का अति तुच्छ नजरिया कहानी का सबल पक्ष द्रुष्टव्य है। "समर्पण" कहानी में संदेह से उपजी खास से टूटते परिवार का चित्रण है।जो अंत में समर्पण से बिखरने से बच जाता है।आज के प्रगतिशील परिवेश में आज भी लड़कियां दकियानूसी समाज की जीर्ण-शीर्ण सोच का शिकार हो जाती हैं।"मधु" कहानी में लड़कियों के प्रति उपेक्षित सोच का वर्णन है। जबकि प्रतिभा लड़कियों का जन्मजात गुण है। समाज में दिखावा शिष्टता सभ्य होने की कसौटी है।"आभूषण" कहानी बाहरी चकाचौंध की क्षणभंगुरता की मानवता की जीत पर आधारित है। "निर्दोष प्रायश्चित" कहानी भी बलात्कार से उपजे मानसिक आघात को चित्रित कर समाज द्वारा स्वीकार करने की भावुक घटना पर आधारित है।सभ्य समाज में बहशी मानसिकता की विभीषिका के बाद सहारा देने वाली मानसिकता कहानी के अंत में सुकून देती है।
"सुहाग सिन्दूर" एक सैनिक के राष्ट्र पर न्यौच्छावर जीवन की भाव विचलित कहानी है। शहादत के बाद पत्नी, बच्चे व परिवार का बिखराव एकाकी जीवन अंदर तक झझकोर देता है। "जीना इसी का नाम है" कहानी संग्रह में कुल 13 कहानियां हैं जो समाज में घटित घटनाक्रम का सजीव चित्रण प्रस्तुत करती हैं। कहानियों की अंतर्वस्तु सुगठित और संतुलित है। संवाद संक्षिप्त और सधे हुए हैं। कल्पना व्यावहारिक और यथार्थ की जमीन से जुड़ी है। भाषा सरल और चरित्र के गुण-धर्म के अनुरूप है। नि:संदेह कहानी संग्रह की सभी कहानियां यथार्थ के घटनाक्रम पर आधारित है। अंत में सभी कहानियां जीने का सबल पथ प्रशस्त करती हैं। कहानी संग्रह काव्य प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित है। सभी कहानियां पाठकों को बांधने में सक्षम है। पाठकों को सुरभि रैना बाली का यह कहानी संग्रह अवश्य पसंद आएगा।चूँकि कहानी संग्रह के चरित्रों की भाषा एवं प्रकृति यथार्थ पर अवलम्बित है।शैली सरल,सहज और सुवोध है। समाज व स्वभाव के विकराल परिवर्तन का वास्तविक आईना है इस कहानी संग्रह की सभी कहानियां।
समीक्षक - राजीव डोगरा 'विमल'
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