ओह्ह मेरे अध्यापकों
देश के भविष्य निर्माताओं
लोग कहते है आपको
समाज का एक बौद्धिक वर्ग
बड़ा ही सम्मानित है आपका पेशा
बड़ी उम्मीदें है आपसे समाज की
गाँव का हर बूढ़ा
सामने दिख जाने पर
झुककर करता है आपको नमस्कार
आप भी तनिक हँस कर
बोल देते हो नमस्कार
लेकिन आपकी कक्षाओं के हालात
तो बड़े दयनीय है।
कोई आश्चर्य नही।
ये बात तो आप भी जानते हो।
आपको पूर्ण विश्वास है
कि बच्चों को कुछ समझ नहीं आ रहा है
फिर भी आप पढाए जा रहे हो
क्योंकि आपका उद्देश्य
केवल पाठ्यक्रम पूरा करवाना है।
एक बार सोचिए गुरुदेव
आखिरी बार हम बच्चों के लिए
कब रात काली थी।
हमें भारत का संविधान पता नहीं
फिर ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिकी संविधान
क्यों रटने का कह रहे हो।
क्या आप नहीं चाहते
की हम रटन पद्धति से ऊपर उठे
आप एक रेडियो मशीन क्यों बन गए
क्यों आपकी कक्षा में हमें
नींद से बचने के लिए
इमली के बीज खाने पड़ते हैं।
कक्षा में रुचि पैदा करना
ये तो आपकी जिम्मेदारी थी ना
फिर कैसे भूल गए गुरुवर आप
या फिर याद ही नहीं रखना चाहते
आप हमसे कोई उम्मीद क्यों नहीं करते
आपको हम बच्चों में संभावनाएँ क्यों नहीं दिखती
रात को चैन की नींद
कैसे सो जाते हो आप
क्या ये विचार मन में नहीं आता आपके
हरि को क्या मुँह दिखाएंगे आप
एक बार हम बच्चों की आँखों में देखिए
उम्मीदें और प्रश्न नजर आयेंगे
बच्चे चिल्ला चिल्लाकर
कुछ नहीं कहेंगे
मन ही मन धिक्कारेंगे आपको
आपको दर्पण की जरूरत है गुरुजी
कभी तो खुद से सवाल पूछिए
कभी तो अपना आधार देखिए
संभलिए गुरुवर, संभलिए
- दुर्गा सीरवी 'बिजोवा'
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