रजत के पड़ोस की बूढ़ी दादी के घर लगे बबूल के पेड़ पर रोज शाम होते ही उल्लू का एक जोड़ा आकर बैठ जाता था , दादी रोज उस जोड़े को देखती और अपने काम में लग जाती। लगभग 7,8 दिन लगातार वो उल्लू का जोड़ा रोज शाम होते ही बबुल के पेड़ पर बैठा रहता। एक दिन किसी राह चलते राहगीर ने उस उल्लू के जोड़ो को उस पेड़ पर बैठे देखा , देखते ही वह तुरंत बूढ़ी दादी के पास गया और बोला दादी इन उल्लुओं का शाम के समय घर मे बैठना शुभ नहीं है इनको यहां मत बैठने दिया करो।
बस फिर क्या था.... दादी के दिमाक में उस राहगीर की बात बेठ गयी और उसी समय उसने आस पड़ोस के बच्चो को बुलाकर उस उल्लू के जोड़ो को उड़ाने के लिए बोल दिया, सभी बच्चे किसी के हाथ में लाठी तो किसी के हाथ में पत्थर सब अपने अपने तरीके से उनको उड़ाने लग गए दादी भी पास बैठी बैठी मुँह से अलग अलग आवाज निकालर तो कभी पत्थर फेककर उल्लुओं को उड़ा रही थी। थोड़ी देर में उल्लू भी परेशान होकर वहा से उड़ गए ।
लेकिन अगले दिन और वह उल्लू का जोड़ा शाम होते ही पेड़ पर आकर बैठ गया , आज दादी उनका ही ध्यान रख रही थी जैसे ही वो आकर बैठे दादी ने आस पास के बच्चों को बुलालर उनको उड़वा दिया, यह प्रकिया 5,6 दिन तक रोज चलती थी रोज उल्लू आकर बैठ जाते और रोज दादी बच्चों को बुलालर उड़वा देती।
एक दिन जब शाम को दादी और बच्चें उल्लू को उड़ा रहे थें तो एक दूसरे राह चलते राहगीर ने देख लिया वह तुरंत दादी के पास आया और बोला अरे मांजी यह आप क्या कर रही हो उस उल्लू के जोड़ो पर पत्थर और लाठी क्यो मार रहे हो उल्लू तो लक्ष्मी जी का वाहन होता हैं और यह घर के लिए शुभ होता हैं।
बस फिर क्या था.... दादी का दिमाक फिर घुमा और सभी बच्चों को उन उल्लुओं को उड़ाने के लिए रोका और ऊपर देखा तो दोनों उल्लू उड़ चुके थे। दादी ने तुरंत बच्चों को वहाँ से भगा दिया और अब उन उल्लुओं का वापस उस बबूल के पेड़ पर बैठने का इंतजार करने लगी , रात को सोते समय एक दो बार नींद खुली तब भी जाकर देखा तो उल्लू नही आये।
अब हर रोज शाम होते ही दादी उल्लुओं का इंतजार करती लेकिन अब उल्लू वहां आते ही नही। 8,10 दिन इंतजार करके थकने के बाद दादी ने सोचा शायद लक्ष्मी जी अब मेरे से रूठ गए और फिर अंदर जाकर अपने रुपये गिनने लग गयी।
✍️ दीपक बारूपाल
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