साहित्य चक्र

07 March 2021

बेड़ियों में नारी कब तक ?

8 मार्च महिला दिवस पर विशेष


" नारी तुम केवल श्रद्धा हो , विश्वास रजत नग पग तल में , पीयूष स्रोत सी बहा करो , जीवन के सुंदर समतल में " जयशंकर प्रसाद की यह पंक्तियां  जिसमें नारी को सम्मान के साथ जीवन पथ पर आगे बढ़ने को प्रेरित किया है ।  मगर क्या सच में यथार्थ पर नारी का वह सम्मान आज के समय में हो रहा है । क्या नारी को समाज में वह स्थान मिल रहा है जो आज पुरुष का है । नहीं  , हम भलीभांति परिचित हैं समाज में नारी के प्रति दोहरा रवैया अपनाया जाता है ।  हर घर में स्त्री को चारदीवारी में रहने को मजबूर किया जाता है । उसे परंपरा की दुहाई दी जाती है , उसको समाज में  बदनामी का डर दिखाया जाता है ।  बचपन से ही उसके दिमाग में बिठा दिया जाता है कि उसको चूल्हा - चोखा करना है पति की , बच्चों की सेवा करनी है।  उसके लिए एक लक्ष्मण रेखा बचपन से ही खींच दी जाती है । बचपन से ही उसको  स्वावलंबी ना बनाकर , एक दूसरे पर आश्रित  कर दिया जाता है।  घर में पुरुषों पर आश्रित रहना उसकी मानसिकता बन जाती है। उसको सिर्फ पर्दे के पीछे की वस्तु बना दिया जाता है  । इसमें दोष किसी एक व्यक्ति या समाज का नहीं है।  इसमें दोष है उस विकृत मानसिकता के लोगों का जो औरत को अपना गुलाम और अपने पैर की जूती समझते हैं। और उस के हक को दबाने के लिए उस पर अत्याचार करते हैं ।  वो भूल जाते हैं की उनको पैदा करने वाली भी एक स्त्री है । 

वह अपनी संकीर्ण सोच के कारण पुरुषत्व का दंभ भरते हैं  । अगर कोई उनके पुरुषत्व पर उंगली उठाए तो उनके अहंकार को ठेस पहुंचती है। वह अपना इतिहास भूल जाते हैं जहां झांसी की रानी , अहिल्याबाई   झनकारी बाई  , रानी पद्मावती ,  इंदिरा गांधी , सरोजिनी नायडू , मदर टेरेसा, किरण बेदी , कल्पना चावला , फूलन देवी जैसी   अनगिनत स्त्रियों से इतिहास भरा पड़ा है।  स्त्रियों की दशा का सजीव चित्रण  मैथिलीशरण गुप्त जी ने किया  " अबला जीवन हाय , तेरी यही कहानी , आंचल में दूध , आंखों में पानी "  मगर अब वक्त बदल रहा है स्त्री पुरुष से कंधा मिलाकर साथ चलती है।  अपनी बुद्धिमता और विवेक से उच्च पदों पर आसीन है। समय के साथ अब स्त्री पुरानी रूढ़िवादी नीतियों को तोड़कर नए सूरज को सलाम करती है । धीरे धीरे अब पुरानी रूढ़िवादी परंपरा खत्म हो रही है।  राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरुद्ध बिगुल बजाया और आज के समय में यह प्रथा अब विलुप्त हो चुकी है।  स्त्री अब पर्दा प्रथा से भी धीरे-धीरे बाहर आ रही है । आने वाले समय में हम उम्मीद कर सकते हैं की दहेज प्रथा भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।  मगर हमें यह ज्ञात रखना होगा , अच्छे बुरे लोग हर युग में मिलते हैं।  इंसान बुरा नहीं होता बुरी होती है उसकी  सोच, उसकी मानसिकता जो उसे संगत से और परवरिश से और आसपास के माहौल से मिलती है। अगर हर समाज सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़े , पुरानी रूढ़ीवादी परंपराओं को तोड़ दे तो , हर समाज में सभ्य स्त्री-पुरुष होंगे। " नारी तुम केवल श्रद्धा हो ,श्रद्धा का ना अपमान करो , स्त्री बन , स्त्री का ना प्रतिकार करो, आगे बढ़ो और बढ़ती जाओ , आडंबर का विरोध करो ,  तोड़ पैर की जंजीरों को , बेड़ियों को तुम लहूलुहान करो "

 जितना स्त्री पुरुष के द्वारा प्रताड़ित होती है। उतना ही स्त्री ,  स्त्री के द्वारा प्रताड़ित की जाती रही है । सबसे पहले स्त्री को ही , स्त्री को समझना होगा। आज देश में स्त्रियों की मजबूती के लिए कई नए नए कानून बनाए जा चुके हैं ।  अब स्त्री को पुरुष के द्वारा और विकृत मानसिकता के लोगों द्वारा प्रताड़ित होने की जरूरत नहीं है।

 वह अपने हक के लिए कानून का सहारा बे-खोफ ले सकती है। आज के समय में स्त्री को यह धारणा धारण करनी चाहिए कि अब कृष्ण नहीं आएंगे , उसे ही काली और दुर्गा का रूप धारण करके दुष्टों का संहार करना होगा। उसे ही अपने हक के लिए लक्ष्मण रेखा पार करनी होगी। किसी भी गली नुक्कड़ सुनसान जगह पर अपने प्रति प्रति किये जा रहै,  भद्दे कमेंट और फब्तियां,  छेड़खानी को अपने आत्मविश्वास के दम पर ही विरोध करना होगा ।  स्त्री को स्वावलंबी बनना होगा । जब तक स्त्री दूसरे पर आश्रित रहेगी पराधीन रहेगी। अपनी गुलामी की जंजीरों को उसे स्वयं ही तोड़ना होगा।


                                                     कमल राठौर साहिल 


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