कलियाँ मुस्काने लगीं, फूल खिले सुकमार ।
मंद-मंद बहने लगी, शीतल सुखद बयार ।
हरियाली है छा गई, बन उपबन चहुँओर ।
सरसों है इतरा रही, मन में उठी हिलोर ।
अंग-अंग में उठ रही, मद से भरी उमंग ।
थामे से थमता नहीं, मन का तीव्र तुरंग ।
भौंरे गुनगुन गीत गा, कोयल भधुरिम गान ।
कलियाँ कहें वसंत से, स्वागत है श्रीमान ।
हरित सुकोमल दूब है, नरम मुलायम घास ।
फूल विहँस कर कर रहे, कलियों से परिहास ।
विहग चहकते मुदित मन, करते कलरव गान ।
तरुवर झूमें पहन कर, मृदु किसलय परिधान ।
पूर्ण प्रकृति आनंदमय, छाया है उल्लास ।
जीव, जंतु, जन, कर रहे, प्रमुदित हास-विलास ।
दिन वसंत के आ गये, फैली सकल सुगंध ।
खोल दिये अलि ने सहज, सभी कली के बंध ।
श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
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