अंधियार कैसे मिटाओगे
बेटी बिन यह दुनियां कैसे चलाओगे
बिन बाती के दीप लिए अंधियार कैसे मिटाओगे
वह आंगन सोचो कैसा होगा..,
जहां स्नेह बंधन पर पड़ा हो ताला
ना ही ममता का आंचल होगा,
ना बहनों की राखी होगी,
सोचो,तुम किस पर लाड़ लूटाओगे
किससे रुठोगे, किसे मनाओगे।
सोचो यह दुनियां कैसे चलाओगे
बिन बाती के दीप लिए अंधियार कैसे मिटाओगे
सृष्टि की उत्पत्ति का प्रारंभिक
बीज होती है बेटियां
लाचार नहीं मजबूर नहीं
परिवार का मान होती है बेटियां
अब बंद करो भूण हत्या
बेटियों को धरती पर आने दो
जीवन ज्योत जलाने दो
दुर्गा लक्ष्मी और काली को
घर-घर बेटी स्वरूप धन-धान्य लहलाने दो।
बेटी बिन सोचो यह दुनियां कैसे चलाओगे
बिन बाती के दीप लिए अंधियार कैसे मिटाओगे।
बिन बेटी तुम ब्याह कैसे रचाओगे,
ना हो बेटी जग में, तुम लल्ला कहां से लाओगे,
बेटा-बेटी में अंतर ढूंढ़ यू खामखां
खुद को उलझाना बंद करो,
अब दोनों ही पढ़ेंगे,दोनों ही बढ़ेंगे,
खुद अपना दोनों इतिहास गढ़ेंगे,
बेटा जैसे बेटियां भी हर मंजिल को पाएगी,
नव पीढ़ी फिर जागृत हो जाएगी
सोचो समझो करो समीक्षा
वचन लो और बेटियों की करो सुरक्षा।
बेटी बिन सोचो यह दुनियां कैसे चलाओगे,
बिन बाती के दीप लिए अंधियार कैसे मिटाओगे।
नूपुर बासु
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