साहित्य चक्र

09 March 2021

सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले जी की याद




मैं बचपन से हमेशा यह सोचती हूंँ, कोई भी कार्य देखकर कि यह सबसे पहले किसने किया होगा, जैसे खाना बना रहे हैं तो सबसे पहले किसने बताया रोटियां ऐसे बनती है। ठीक ऐसे ही जब मैं सोचूं क्या आज जो महिलाएं शिक्षित हैं। सबसे पहले कौन पढ़ी होगी और किसने महिलाओं को पढ़ाया होगा ? क्योंकि यह तो जग जाहिर है कि महिलाओं के ऊपर तो बहुत ज्यादा बंदिशे होती थी। वह नाम है सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले, जो भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारक एवं मराठी कवियत्री थी।

3 जनवरी 1831 पुणे में उनका जन्म हुआ और 1840 में ज्योतिराव फुले से  विवाह हुआ और उनको जबरदस्ती पढ़ाई से उठा दिया गया, विवाह के बाद इनके पति ने उनका साथ दिया, प्राइमरी तक की शिक्षा इन्होंने घर पर ही रह कर पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए इनके दो मित्रों ने उनकी सहायता की। सावित्री जी कहती थी- स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो, पाठशाला ही सच्चा गहना है, चलो पाठशाला जाओ यही नारा उन्होंने सभी लड़कियों के लिए दिया था।

यह बात उस समय की है जब बालिकाओं को पढ़ाना उन को स्कूल भेजना पाप कहलाता था। ऐसे में जब सावित्रीबाई फुले ने आवाज उठाई, तो कुछ विरोधियों ने उन पर पत्थर फेंके और उन पर गंदगी फेंकी। मगर सावित्रीबाई इनसे पीछे नहीं हटी। सावित्री जी एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थी ताकि वह स्कूल पहुंचकर गंदी साड़ी बदल लें। मजबूत इरादों वाली महिला सावित्रीबाई ने वह कारनामा कर दिखाया जो उस वक्त कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था। अपने पथ पर चलती गई और लोगों को प्रेरणा देती गई।

इन्होंने सभी जात-बिरादरी की बालिकाओं के लिए कार्य किया था। 3 जनवरी 1848 में पुणे में अपने पति ज्योतिबा के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की 9 छात्राओं के साथ महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। 1 वर्ष में ही सावित्रीबाई और उनके पति ने मिलकर पांच विद्यालय खोल दिए।तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने उनके इस कार्य को देखते हुए उनको सम्मानित भी किया। 10 मार्च 1897 को यह महानायिका हम सब को छोड़ कर चली गई।




आज की लड़कियां शायद कल्पना भी नहीं कर पाएगी, उस समय लड़कियों की शिक्षा पर सामाजिक पाबंदी किस हद तक थी और ऐसे दौर में सावित्रीबाई फुले न सिर्फ खुद पढ़ी बल्कि दूसरी लड़कियों को पढ़ाने का भी बंदोबस्त कर गई। अगर उस समय उन्होंने यह कदम ना उठाया होता तो आज शायद हम और आप स्त्रियाँ पढ़ने और लिखने के काबिल नहीं होते। हम सभी महिला समाज को इस महानायिका को हमेशा याद रखना चाहिए। आज 10 मार्च को सावित्रीबाई फुले जी की पुण्यतिथि है, इस मौके पर उन्हें समस्त महिला समाज की ओर से शत-शत नमन और कोटि-कोटि प्रमाण।



                                                                                 वंदना शर्मा




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