साहित्य चक्र

20 March 2021

मैं शिलालेख


 में वह शिलालेख हूं
जिसे थोड़ा-थोड़ा 
हर कोई तोड़ता है।

वो मुझको तोड़कर 
बिखेर देना चाहते है।

वो मुझे जर्रा जर्रा कर 
मरुभूमि में मिला देना चाहते हैं।
वो सवाल उठाते हैं ।

मेरे वजूद , मेरे अस्तित्व पर
वह बर्दाश्त नहीं कर पाते
मेरे गगन चूमते प्रतिबिंब को 
वह अनगिनत प्रहार करते हैं।

मुझको पहाड़ से, 
कंकर बनाने के लिए
 वो पूरी ताकत लगाते हैं।
 मुझको मिटाने के लिए
 मैं खामोश सा उनको देखता रहता हूं।

इसी खामोशी में 
कुछ फरिश्ते आते हैं ।

मुझको तराशने के लिए,
वह जौहरी बन मुझको तराशते
और मैं खामोश  सा 
खड़ा पाषाण , टूट कर भी 
और निखर जाता ।

मैं शिलालेख बन
हर परिवर्तन को स्वीकार करता।


                                         कमल राठौर साहिल 

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