हा स्वयं में ही मैं हूं खास
नहीं ओढ़ रखा कोई लिबास
हर लम्हा बीत रहा है मुझमें
हूं गुजरते वक्त की हर बात,
वक्त की स्याही से लिखा गया
हर पन्ने पर वजूद मेरा साहिब
गुजरे वक्त का हर लम्हा मुझमें
है बस हरदम किसी की तलाश!
मैं इतिहास हूं।।
ना हसाता हूं ना रुलाता हूं
बीते समय की हर दास्तां सुनाता हूं
हर इमारत की कहानी है मुझमें
हर जर्रे की है यहां बड़ी खास बात
हर जज्बात का कदरदान हूं
कितने ही किस्से है मेरे साहिब
कभी किसी की वीर गाथा हूं
कभी किसी का स्वाभिमान हूं!
हां मैं इतिहास हूं।।
बड़े-बड़े युगो की कहानी पढ़कर
सबको याद दिलाता हूं,
हर हिस्से मैं बसा हुआ हूं
मैं सबको जोड़ना चाहता हूं,
यहां हर किसी की अपनी ही
अलग परिभाषा है !
पहचान बनाने को अपनी
हर कोई इतिहास रचता है!
हा मैं इतिहास हूं।।
प्रतिभा दुबे
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