साहित्य चक्र

07 March 2021

गोरी खड़ी उदास




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कोयल वैरन हो गई, हृदय विदारक कूक।
कुहू-कुहू की टेर सुन , हिय में उठती हूक।

हरियाली है छा गई, खुशहाली चहुँओर।
बिन प्रियतम गीली हुईं, इन आँखन की कोर।

जड़ चेतन हर्षित हुये, एक नवल उल्लास।
प्रिय का पंथ निहारती, गोरी खड़ी उदास।

मन में प्रिय की छवि बसी, मधुर मिलन की आस।
अंदर पतझड़ चल रहा, बाहर है मधुमास।

मधुऋतु में रसहीन हो, सूख रहे मृदुगात ।
तन में तपती ग्रीष्म है, नयनों में बरसात।

पुरवाई ज्यों आग की, लपटें बनीं कराल।
फूल आग के पुंज से, दहक रहे विकराल।

बैठी-बैठी सोचती, कब आयेंगे मीत ।
कहीं प्रतीक्षा में नहीं, जीवन जाये बीत।

तम रजनी के बाद में, फिर उगते दिनमान।
दुख बीते फिर सुख मिले, विधि का यही विधान।

मुझ विरहन की पीर का, कभी तो होगा अंत।
कभी इधर भी आयेंगे, मेरे कंत वसंत ।

दुख की रजनी घोर तम, जलते कई सबाल।
सकारात्मक सोच का, मरियल हुआ मराल।

आयेंगे सुख दिवस भी, यही आस विश्वास।
तब प्रियतम के साथ में, झूमेगा मधुमास।

                                     श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'


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