साहित्य चक्र

06 December 2024

कहानी- अल्हड़ लड़की



       पहाड़ियों के बीच में सुंदर सा गांव चारों तरफ हरियाली , पेड़ पौधे , सीढ़ीदार खेत , और लकड़ी के पत्थर के मजबूत घर जिनमें बड़े बड़े आंगन जिसको कि मिट्टी से लीपा हुआ था और उसमें चटाई पर धूप सेंकती हुई एक सोलह साल की लड़की जिसका नाम सोना है साफ सुथरा रंग और गुलाबी गाल और होंठ सबको अपनी तरह आकृषित करते सोना थी भी बला की खूबसूरत लड़की... वह हाथ में किताब लिए हुए शायद अपना पाठ याद करती हुई आंगन में बैठी है....





        तभी किचन से मां की आवाज आती है सोना बेटा आके नाश्ता कर ले... किचन में चली जाती सोना जहां पर उसकी दादी, दादा जी और उसके पिताजी और छोटा भाई भी रोटी और सब्जी खा रहे थे... मां ने सोना को भी सब्जी रोटी और दूध दिया... सभी नाश्ता खत्म कर चुके थे...

          सोना और उसका छोटा भाई स्कूल के लिए तैयार हो के स्कूल चले जाते है मां झट से बर्तन धो के और सफाई करके खेत को चली जाती ही है... दादी और दादा जी भी काम में लग जाते है... 

          धीरे धीरे सोना बारहवीं पास करके कॉलेज में चली जाती है जो भी सोना को देखता वही बहाने से उससे पूछताछ करने की कोशिश करते थे...
         
पर सोना इतनी भी नादान न थी वही सब समझती थी क्यों हर कोई उससे बात करते है सब उससे दोस्ती करना चाहते है... पर सोना अपनी पढ़ाई करती और अच्छे नंबरों से पास होती...

          इतने में एक दिन दूर का एक लड़का सोना को देखते ही आवक रह गया उसने पहले कभी इतनी सुंदर लड़की नि देखीं थी वह झट से सोना से प्यार कर बैठा और सोना थोड़ा कतराती और तिरछी नजर से देख कर उसको अपना दिल दे बैठी पर सोना डरती भी थी कि उसकी वजह से कहीं मैं बदनाम न हो जाऊं लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे मगर वह क्या करती वह भी अपने दिल के आगे मजबूर थी...

        अब वह कॉलेज जाती तो अनगिनत लोग उसको चाहते थे पर वह तो उस अंजान को अपना दिल दे बैठी थी अब वह और अजनबी धीरे धीरे कभी कभी मिलते तो थोड़ी देर की ही मुलाकात में हो जिंदगी भर के सपने देखती और वह उसको अपने प्रेमजाल में फंसा के खुश होता था और अनेक वादे करता उसको शादी का झांसा देता वह पागल भी उसका झूठ न पकड़ पाई और वह भी रंगीन दुनिया में खो जाती...

          अब सोना का ग्रेजुएशन पूरा होने को था इतने में सोना को एक बाज रूपी इंसान देखता है और वह उसको पाने के लिए सारे प्रयत्न करता है... उसका प्रेमी भी न जाने कहां चले गया सोना ने आखिर हार मान ली कि वह अब उसकी जिंदगी से जा चुका है और वह अब उस बाज रूपी इंसान की पत्नी बन गई...

       सोना की किस्मत में तो प्यार ही नहीं था वह बाज रूपी इंसान उसको शराब पीकर रोज मारता पीटता और गालियां देता वह बेचारी आसूं बहाती हुई उस भगवान को कोसती कि क्यों पैदा किया जब खुशियां ही नहीं लिखी तूने मेरी किस्मत में...

         पर अब हो भी क्या सकता था वह बस अब दिन काट रही थी इसी बीच उसके दो बच्चे हो गए अब वह उनका लालन पालन करने लगीं सोच कर कि कभी तो उसकी किस्मत पलटेगी... अब उसके बच्चे भी बड़े हो गए और अपनी मां को प्यार करते और उसका ख्याल रखते...

         अब सोना खुश थी और अब न उसके पास न वह इंसान था न बाज रूपी इंसान क्योंकि उसके पास था तो अपने बच्चों का प्यार और साथ...

         अब सोना खुले आसमान में गोते लगा रही थी अपने बच्चों के साथ अपने बच्चों के साथ जिन्होंने उसे प्यार दिया सम्मान दिया और आजादी दी अपने अतीत रूपी पिंजरे को तोड़ती हुई वह आजाद है... 

आज वह हंसती है, खिलखिलाती है, मुस्काती है, सपने देखती है, गुनगुनाती है, और खुले आसमान में तितली की तरह ऊंचाई भरती हुई, एक हिरनी की तरह कुलांचे मारती हुई हर दिन जीती है ...

        ये है सोना की कहानी और आज सोना बहुत खुश है अपनी छोटे से परिवार के साथ...!

        
                              - सुमन डोभाल काला,   देहरादून, उत्तराखंड


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