रास्ता दौड़ रहा है, किसी सरपट दौड़ती ट्रेन की तरह, और मैं ठहर गई हूँ। सब कुछ आगे बढ़ता जा रहा है। मैं भी जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाने लगी हूँ, पर रास्ते की रफ़्तार का साथ नहीं दे पा रही। बस गिरने ही वाली हूँ, लेकिन मैं गिरना नहीं चाहती। लड़खड़ाते हुए, भागने लगी हूँ।
मेरी धड़कनें तेज हो चुकी हैं। मन घबरा रहा है कि कहीं गिर न जाऊँ। दौड़ते-दौड़ते आसपास देखा तो पाया, और भी लोग दौड़ रहे हैं। कुछ मेरी ओर देखते हुए आगे निकल गए। मैं रोना चाहती हूँ ज़ोर से चीखना चाहती हू लेकिन वक़्त नहीं है। मैं रेस में हूँ। रेस छोड़ नहीं सकती।
क्या यह सच में रेस है ? मेरी शू-लेस ढीली हो चुकी है, खुलने को है। पर इसे बाँधने का भी वक़्त नहीं। क्या सच में वक़्त नहीं है ? आँखों के आँसू अब पसीने में बदल चुके हैं। मैं दौड़ रही हूँ। मेरा शरीर तरबतर हो गया है।
बाकी धावक उस रेस के अंत में, उस लाल झंडे पर निगाहें टिकाए हुए हैं। पर मैं... मैं दौड़ते हुए सोच रही हूँ—अगर वह झंडा मिल भी गया, तो उसके बाद क्या करना है ? अब मेरा ध्यान दौड़ पर नहीं, सोच पर है। मेरे पैर थके नहीं हैं, पर उनकी रफ़्तार धीमी हो गई है। सब कुछ अचानक और तेज़ हो गया है। जैसे कोई तीव्र गति से चलता पंखा हो, जिसकी पंखुड़ियों की गिनती करना मुश्किल हो।
मेरा सिर चकरा रहा है।
शोर है—बहुत तेज़ शोर। लोग चीख रहे हैं।
मेरी धड़कने अब मेरे कानों को ज़ोर ज़ोर से पुकार रही है।
मेरी दौड़ अब चाल में बदल रही है।
फिर अचानक, एक ज़ोर की आवाज़ आई-
"रुको!"
"रुक जाओ!"
"रुको!"
मैं रुक गई।
कहाँ जा रही हो?
वह लाल झंडा तुम्हारे लिए नहीं है।
यह रास्ता तुम्हारे लिए है।
तुम्हें इस पर चलना है, अपनी चुनी हुई गति से।
मैं ठहरते ठहरते वापस दौड़ने लगी, मैं रास्ते की ओर देख मुस्कुराई,रास्ता मुझे देखकर मुस्कुराया। अब कोई शोर सुनाई नहीं दे रहा है,अब कोई एक झंडा नहीं है। हज़ारों झंडे हैं।
रंग-बिरंगे।
मैं उन्हें पार करते हुए दौड़ रही हूँ।
हाँ, अब मैं दौड़ रही हूँ।
अपनी चुनी हुई गति से।
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