सचिन के फोन पर किसी का फोन आया और सचिन जल्दी से कहीं जाने के लिए घर से निकल ही रहा था कि विश्वास जो उसके बचपन का दोस्त था उसके पास आया और उसने सचिन से पूछा कि क्या हुआ, लेकिन सचिन ने उसे टाल दिया और हड़बड़ी में वहां से चला गया। विश्वास हैरत से उसे देखता रहा और किसी अनिष्ट की आशंका में उसने सचिन का पीछा करने का निश्चय किया।
कुछ देर ढूंढने के बाद सचिन उसे मिल गया लेकिन घायल अवस्था में एक सुनसान जगह पर जहां लोगों की आवाजाही कम थी। विश्वास ने तुरंत एम्बुलेंस बुला कर सचिन को अस्पताल पहुंचाया और पुलिस एवं उसके घरवालों को सूचित किया। कुछ ही दिनों में सचिन ठीक हो गया और बोला कि कुछ लोग कई दिनों से उसे काम करने के लिए अपने साथ मिलाना चाहते थे, उन्होंने अपने उच्च अधिकारी से मिलने के लिए उसे तुरंत बुलवाया था लेकिन उनका काम नशीले पदार्थ सप्लाई करना था, जिसे सुनकर सचिन के पैरों तले से जमीन निकल गई और उसने उस काम को करने से साफ इंकार कर दिया।उन लोगों को यह डर था कि कहीं सचिन उनका राज न खोल दे इस लिए उसे खत्म करने के लिए एकाएक उस पर हमला कर दिया और उसे मरने के लिए छोड़ कर चले गए।
सचिन अपने माता-पिता को साथ लेकर विश्वास के घर गया और विश्वास का शुक्रिया अदा करते हुए बोला कि दोस्त अभी तो काफ़ी दिनों से हमारा कोई सम्पर्क भी नहीं है तो भी तुम ने मेरे बारे में इतना सोचा और मेरी जान बचाई, ये सुनकर विश्वास बोला, दोस्त हम बचपन के दोस्त हैं और दोस्ती कभी इस बात की मोहताज नहीं होती कि हम आपस में कितना मिलते हैं और साथ में कितना वक्त बिताते हैं। अच्छे और सच्चे दोस्त दिल से जुड़े होते हैं और चेहरे से ही एक-दूसरे की जरूरत समझ लेते हैं।
ये सुनकर सचिन विश्वास के गले लग गया, दोनों दोस्तों की आंखों में ख़ुशी के आंसू थे। ये देख कर सचिन के माता-पिता की आंखें भी नम हो गई और वे खुशी से एक साथ बोले,"और हमें तुम्हारी दोस्ती पर नाज़ है!"
- कंचन चौहान, बीकानेर
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