साहित्य चक्र

15 December 2024

पांच रचनाकार और पांच कविताएं




जिसे आसमां तक  उठा कर चले।
नज़र वो  मुझी  से  बचा कर चले।

नहीं  छोड़िए  साथ उसका  कभी,
सभीसे जोमिलकरमिलाकर चले।

वफ़ा जिन से करते  रहे रात दिन,
वही  दिल  हमारा  दुखा कर चले।

सदा  कीजिए  बात उसकी  मियाँ,
जोसहरा में भीगुल खिलाकर चले।

मिला कर चलो उस से काँधा सदा,
जो परचम को ऊँचा उठा कर चले।

                           - हमीद कानपुरी

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मैं लिखूं ग़ज़ल तेरी शबनमी आंखों में डूबकर।

याद करके ज़ालिम और मुझको सज़ा न दे।
तेरे वादों का ऐतबार नहीं मुझको दग़ा न दे।

पुरानी मुहब्बतों के चिराग़ फ़िर से न जल उठें।
वो मस्त आंखों से शराब मुझको पिला न दे ।

मेरी आंखों में तेरी तस्वीर अब भी है बनी हुई।
मेरी कोई हरकत राज़ ए दिल सबको बता न दे।

ख़्वाब तेरे ही बसा रखे हैं,इन बहती आंखों में।
लहरें हक़ीक़त की आंखों में कंकर छुपा न दे।

तस्वीर तेरी बना रहा हूं, ख़ुद से बेख़बर हो कर।
डर है ज़माना आकर मुझसे तुझको छुड़ा न ले।

मैं लिखुं ग़ज़ल तेरी शबनमी आंखों में डूबकर।
ग़ज़लों के मेरी, शेर कोई "मुश्ताक़" चुरा न ले।

                                   - डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

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मेरा मुर्शिद

मेरी महफिल में अगर
तुम आओ तो
सारे शहर के गम ले आओ
उन गमों को
मेरे मुर्शद की एक मुस्कुराहट से
घायल कर जाओ।

मेरी महफिल में अगर
तुम आओ तो
सारे शहर के दर्द भरे अश्क़ ले आओ
उन अश्कों को
मेरे मुर्शद की एक निगाह से
कायल कर जाओ।

मेरी महफिल में अगर
तुम आओ तो
सारे शहर के जख़्म ले आओ
उन जख्मों को
मेरे मुर्शद के एक नाम से
भरकर  चले जाओ।


                           - डॉ.राजीव डोगरा


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यह चार लोग

यह चार लोग ही हैं दुनिया में
चलती है जिन की सरदारी
झूठे बेईमान चुगलबाज और लालची
इनसे डरती है दुनियां सारी

जब भी करना होता है शुरू कोई काम
सब यही कहते हैं चार लोग क्या कहेंगे
इन चार लोगों के किस्से हैं हर जुबान पर
रहना पड़ेगा इनके साथ चाहे यह कुछ भी करेंगे

झूठा झूठ फैलाएगा
छोटी छोटी बातों को बड़ा बताएगा
रिश्तों में पैदा कर देगा दरार
अपना काम करके निकल जायेगा

बेईमान बेईमानी से बाज नहीं आएगा
मेहनत से कभी नहीं कमाएगा
हेराफेरी से कर लेगा दौलत इक्कठी
पर उसको साथ नहीं ले जा पायेगा

चुगलबाज भी कम नहीं किसी से
इधर की बात उधर मिर्च लगाकर बताएगा
दूर से तमाशा देखेगा घर जलाकर
भाई को भाई से लड़ायेगा

लालची लालच में आ जायेगा
राज की बात भी दूसरों को बताएगा
बदनाम करेगा ज़माने में
इज़्ज़त ख़ाक में मिलाएगा

हम सब के अंदर ही हैं यह चार लोग
अपने अंदर झांक कर देखो जरा
मन को बहुत सकूँ मिलेगा छोड़ दो बुराई
दूसरों का भला कभी करके देखो जरा


                            - रवींद्र कुमार शर्मा

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क्यों ? यूँ जताते हो अपनी नाराजगी

क्यों? यूँ जताते हो अपनी नाराजगी,
जब लौटकर महायुती में ही आना है।
क्या? ये बीमारी भी एक बहाना है,
फिर लौटकर इसी घर ही आना है!
अपरिपक्व कह रहा यह जमाना है।

क्यों? यूँ जताते हो अपनी नाराजगी,
जब लौटकर महायुती में ही आना है।
अब न जाना सतारा नेटवर्क है खटारा,
वे दिल्लीवाले हैं अब न खोलेंगे पिटारा!
मुश्किल में पाओगे अजब ही है नज़ारा।

क्यों? यूँ जताते हो अपनी नाराजगी,
जब लौटकर महायुती में ही आना है।
छोड़ दो जिद अब नहीं रही है वह बात,
उनका प्रचंड है बहुमत छूट जाएगा साथ!
ऐसा ना हो कहीं मलते रह जाओ हाथ।

क्यों? यूँ जताते हो अपनी नाराजगी,
जब लौटकर महायुती में ही आना है।
सोच लो, अगर यही रवैया रखना है,
नेता बनकर खुद को भी परखना है!
हा रिक्त है नेता प्रतिपक्ष का भी स्थान,
उस पर हो जाओ एकनाथ विराजमान।

                            - संजय एम. तराणेकर

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