साहित्य चक्र

05 December 2024

महादानव





जीवित नहीं 
मुर्दे हो तुम 
महानगर के महामानव नहीं
महादानव हो तुम।

अपने मतलब के लिए 
बनाते हो हर किसी को 
अपने ख्वाबों का परिंदा
फिर कहते हो 
अब भी मैं हुँ सब में जिंदा।

शर्म कर्म बेच कर अपनी 
दो टके के लोगों को
कहते हो सब को 
किरदार मेरा है
अब भी सबसे उम्दा।


                                           - डॉ.राजीव डोगरा



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