साहित्य चक्र

21 December 2024

कविता- जिंदगी





खामोश लबों की दास्तां खामोशी से छुपा रखी है,
खामोशी पर हज़ारों गमों की ज़िल्द चढा रखी है,
जिससे भी निभाई थी सबसे ज्यादा रस्मे वफा,
उसने दुनिया किसी और के वास्ते सज़ा रखी है।

गम नहीं हमने गमों के साथ जीना सीख लिया है,
हज़ारो गमों को भी अब छुपाना सीख लिया है,
शायद मज़बूरी होगी तेरी या तेरी तंग दिली थी,
हमने अब भी कांटों से दोस्ती बरकरार रखी है।

तेरे दामन को थामने की हमने भी ठान रखी है,
हमने भी तेरे कदमों संग कदमताल मिला रखी है,
तू जितनी भी खेल आँख मिचौली हमारे साथ, 
तू जिधऱ भी जाए तेरे पदचिन्हों पर नज़र रखी है।

सितमगर है तू,सितम ढाने की कसम खा रखी है,
पर मैने भी हद से गुजरने की कसम खा रखी है,
सता ले चाहे जिंदगी जितना भी अपनी आदत से,
मैने भी तुझे जीतने की कसम खा रखी है।


                                                                   - राज कुमार कौंडल 


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