क्यों की मैं अब दुनिया के रिती और
रिवाजों से नहीं चलता हूं!
क्यों की जों दिखता हैं.
उसपर यकीन नहीं करता हूं ।
दुनिया के नजरों से देखा उन्होंने
क्यों की मैं भावों के भव सागर में डूब जाता हूं
और इल्म के साथ जीता हूं.
क्यों की मैं यथार्थ को पीता हूं।
दुनिया के नजरों से देखा उन्होंने
क्यों की पथीक पावनी सा एक पथीक था मैं,
जो आपने ही वेग से मेरू कों मार, कर,
पार खुद क्षीर ,बन धीर - गंभीर सी बन जाती हैं।
दुनिया की नजरों से देखा उन्होंने
क्यों की अवाम को कम बेजूंबान कों अधिक सुनता हूं मैं!
क्यों की मैं इंसान के करीब कम आसमां सुरज,
चांद के अधिक करीब रहता था मैं।
दुनिया के नजरों से देखा उन्होंने
क्यों की मैं चातक सा जीता था! और
स्वाति का रसपान करता था !
दुनिया की नजरों से देखा उन्होंने।
- विवेक यादव
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