नदिया की अविरल धाराएं मन की व्यथा सुनाती हैं
ठहर-ठहर हर डगर, घाट पर गोपन कथा सुनाती हैं।
कभी-कभी घर की बातों को चौबारों तक लाती हैं।
नदिया के दुख हरने को वे बाँह पसारे होते हैं
सच है सागर सारे आंसू मन में धारे होते हैं।
जिनके आँसू सीपी में ढलकर मोती बन जाते हैं
परिवारों की ख़ुशियाँ लाने बाजारों तक आते हैं।
पीकर दुख के घूँट सदा ही मुस्कानों को गाते हैं
दिल पर पत्थर रखने वाले ख़ुद पत्थर कहलाते हैं।
पीड़ा का संसार समेटे मन के हारे होते हैं
सच है सागर सारे आंसू मन में धारे होते हैं।
सूरज का प्रतिबिंब बना जो उस चंदा की छाया है
जिसने उनको जैसा देखा उसने वैसा पाया है।
सागर का खारापन यूँ भी तटबंधों तक आया है
हर सागर में आँसू वाला सागर स्वयं समाया है।
इस कारण मीठी नादिया को इतने प्यारे होते हैं
सच है सागर सारे आंसू मन में धारे होते हैं।
- श्रद्धा शौर्य
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