साहित्य चक्र

15 December 2024

कविता- कोरे पन्ने किताब के




जिंदगी ने आज कोरे पन्नों को पढ़ा है,
 जिस पर ना कुछ लिखा था।
बस चारों तरफ सफेद ही सफेद नजर आता था।

जिंदगी में जब धीरे-धीरे से पढ़ना शुरू किया,
 तब बहुत कुछ समझ में आया।
जब कलम हाथ में पकड़ी ,
बहुत कुछ हकीकत लिख डाली।

कुछ सच्ची कुछ झूठी ,
न जाने कितना कुछ,
इसमें लिख डाला।
कुछ सच्ची जीवन की घटना है ,
इसमें लिख डाली हैं।

कुछ झूठी खबरों के इसमें आरोप लगा डाले,
 एक ओर कागज का पन्ना,
 हर एक की जिंदगी में कुछ ना कुछ मोड़ लेकर आता है।

कभी तो किसी को कुछ बनाकर छोड़ देता है,
 कभी उसको उसमें ही उलझा कर रखता है।
 यही तो जीवन की सच्चाई है ,
जो हर एक को समझ नहीं आती है।
 जिंदगी ऐसे ही कोरे पन्ने की तरह खाली है ।

जब जिंदगी की हकीकत ,
हर एक इंसान को समझ आती है।
तब वह जिंदगी में कुछ तो अच्छा कर पता है,
 कुछ मुसीबत से लड़ पता है।
उसका हल खोज पता है ,
तब वह धीरे-धीरे सफल हो पता है।


                                                   - रामदेवी करौठिया



No comments:

Post a Comment