साहित्य चक्र

27 November 2024

जब तुम याद आते हो



अश्क अक्सर आंखों में आकर आंखों में समा जाते हैं।
जब तुम याद आते हो तो अश्क भी बह नहीं पाते हैं।

ये अश्क शायद तुम्हारे अक्स से रुबरू होना चाहते हैं।
जब तुम याद आते हो,जाने क्योंधड़कन भी बढ़ जाती है।

शायद तुम्हारे आने की दस्तक पूर्वगामी ही सुन लेती है।
जब तुम याद आते हो, यह फिज़ाए महक सी जाती है।

तुम्हारे आने की ख़ुशबू पवन इन वादियों में फैलाती है।
जब तुम याद आते हो सांझ बाती विरह में जल उठती और देखो,
इस पागल पतंगें को नियति जान मंडराता है।

जब तुम याद आते हो,शंख ध्वनि गुंजायमान होती है।
और यह हृदय, संध्या आरती से विचलित हो उठता है।

और मेरे कान्हा को मेरी यह धृष्टता तब रास नहीं आता।
जब तुम याद आते हो ,मेरा मन अस्थिर होता जाता है।

मैं मनुष्य जन्म के अंतिम उद्देश्य से विमुख हो जाती हूं।
तुम्हें पाने का मेरे मन में न कोई उद्देश्य न कामना है।

न पाकर जो पाया है,तुलना नहीं वो तो सुफियाना है।
जब तुम याद आते हो, ईश्वर का सानिध्य मिल जाता है।


- दीपा


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