न सही विश्वास मेरा,
पूछ लें उस दीप से।
जो रात सारी रहा जलता,
साथ मेरे बन प्रतिबिंब।।
हाल सारा जायेगा कह,
दीप वह जो बुझ गया।
जगने का सबब मेरा,
और जलने के मजा।।
मांगती विश्वास का बल,
देख ले इक नजर भर।
बस वही लेकर मैं संबल,
जलती रहूँगी चिर -युगों तक।।
हाथ गहकर बस तू कह दे,
सफल होगी यह प्रतीक्षा।
उम्र के विश्वास की,
बहुत है वह एक ही पल।।
- डॉ. पल्लवी सिंह 'अनुमेहा'
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