रात घनघोर अंधेरा,
तिमिर ने कैसा जाल बिछाया...
उम्मीदें मेरी बिखरने लगी,
फिर...
नभ ने सुनहरे धूप का चादर,
लहराया जो हरीतिमा धरा पर...
मस्ती से झूम उठी धरती,
बहने लगी नदियां बलखाकर!
हवा का झोंका लेकर चली पुरवाई,
महकने लगी जीवन की फुलवारी!
पंछी चहके, गीत सुनाए...
आशा की किरणें संदेशा लाई!
और...
सबने जीवन का पाठ पढ़ाया,
पथिक तू कहीं रुक न जाना...
लक्ष्य तेरा है कबसे बांहे फैलाए,
निरंतर तुमको तो है चलते जाना!
- अनिता सिंह, देवघर, झारखंड
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