साहित्य चक्र

25 November 2024

जीवन का पाठ




बस, यूं ही...
रात घनघोर अंधेरा,
तिमिर ने कैसा जाल बिछाया...
उम्मीदें मेरी बिखरने लगी,
सांसे भी ज्यूँ उखड़ने को चली!
फिर...

नभ ने सुनहरे धूप का चादर,
लहराया जो हरीतिमा धरा पर...
मस्ती से झूम उठी धरती,
बहने लगी नदियां बलखाकर!

हवा का झोंका लेकर चली पुरवाई,
महकने लगी जीवन की फुलवारी!
पंछी चहके, गीत सुनाए...
आशा की किरणें संदेशा लाई!
और...

सबने जीवन का पाठ पढ़ाया,
पथिक तू कहीं रुक न जाना...
लक्ष्य तेरा है कबसे बांहे फैलाए,
निरंतर तुमको तो है चलते जाना!

- अनिता सिंह, देवघर, झारखंड

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