घर में चाहे कितने ही लोग क्यों ना हो,
अगर मां ना दिखाई तो घर खाली खाली लगता है।
दम तोड़ देती है मां-बाप
की ममता जब बच्चे कहते हैं
की तुमने किया क्या हमारे लिए हमारे लिए
ठंडी रोटी अक्सर उनके नसीब में होती हैं
जो अपनों के लिए कमाई करके देर से घर लौटते हैं
जब एक रोटी के चार टुकड़े हो
और खाने वाले पांच
तब मुझे भूख नहीं हैं ऐसा कहने वाली सिर्फ मां होती हैं।
न जाने कितना दुख कामता है एक पिता
औलाद की खुशी के खरीदने के लिए
फिर भी इस औलाद के महल में
एक कोना नहीं मिलता मां-बाप को ठहरने के लिए
मेरी मां आज भी अनपढ़ है,
रोटी एक मांगता हूं वो दो लाकर देती है।
आज रोटी के पीछे भागता हूं,
तो याद आती है मुझे रोटी खिलाने के लिए
मां मेरे पीछे भागती थी।
मत गुस्सा करना अपनी मां पे यारों
वो मां की दुआ ही जो हर मुसीबत से बचाती है।
- अनूप सिंह
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