साहित्य चक्र

25 November 2024

ख़ुशियाँ वही बसती हैं





न दिखाओ,
ज़रीदार कुर्ती के सपने 
जीने दो,
पैबंद लगे लिबास में।

जी रहे हैं ज़िंदगी वो,
हम जी रहे हैं 
ज़िंदा लाश में।
छुपने दो पैबंद, 
खुशी के लिबास में।

गम कुरेदने से 
गम कम नही होते।
गमों के सागर में भी,
ख़ुशियों के पल कम नही होते ।

एक रोटी को 
आधा बाँट कर खाना ,
बड़ों का पानी पीकर सो जाना।
गम मे जो मुस्कुरा सकते हैं,
वही , जो ज़िंदगी निभा सकते हैं।

छोटी सी झोपड़ी 
और टपकता हुआ छत।
असबाब बचाने की 
वो जद्दोज़हद।
पैर फैलाने को 
नही दो को जगह,
साथ रह जायें दस दस।

दिवाली मे तुम 
झिलमिल लड़ियाँ जलाओगे,
उनके दरवाजों पर मगर 
एक दीया जलता हुआ पाओगे।

नही है महलों की वीरानियाँ ,
लाशों की पहरेदारियाँ।
है पैबंद लिबास पर तो क्या,
कोई पैबंद नही जीवन पर यहाँ।


                                                                         - शिखा लाहिरी



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