गाना नहीं आता मुझे
नहीं गाना भी नहीं आता
यह बात
लगभग हर बात के बारे में है -
जैसे कि नेल पेंट लगाना नहीं आता मुझे
नहीं लगाना भी नहीं आता
पढ़ाना नहीं आता मुझे
नहीं पढ़ाना भी नहीं आता
कविता लिखना नहीं आता मुझे
नहीं लिखना भी नहीं आता
जीवन में जो कुछ सम्भव हुआ
वह हुआ उस सम्भावना की तरह
जो नहीं आने और नहीं आने के बीच खुलती है
एक द्वार की तरह
जैसे पानी के मौन और धूप की मुखरता के
ऐन बीचोंबीच खिलता है
एक कमल
ठीक से प्यार करना नहीं आता मुझे
नहीं प्यार करना भी नहीं आता
मेरे स्वप्नों की धूप में रखी हैं पानी की कविताएँ
छाती में सहस्त्रदल खिलते हैं !
- बाबुषा कोहली
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