साहित्य चक्र

29 November 2024

मुझे गाना नहीं आता




गाना नहीं आता मुझे

नहीं गाना भी नहीं आता

यह बात

लगभग हर बात के बारे में है -

जैसे कि नेल पेंट लगाना नहीं आता मुझे

नहीं लगाना भी नहीं आता

पढ़ाना नहीं आता मुझे

नहीं पढ़ाना भी नहीं आता

कविता लिखना नहीं आता मुझे

नहीं लिखना भी नहीं आता

जीवन में जो कुछ सम्भव हुआ

वह हुआ उस सम्भावना की तरह

जो नहीं आने और नहीं आने के बीच खुलती है

एक द्वार की तरह

जैसे पानी के मौन और धूप की मुखरता के

ऐन बीचोंबीच खिलता है

एक कमल

ठीक से प्यार करना नहीं आता मुझे

नहीं प्यार करना भी नहीं आता

मेरे स्वप्नों की धूप में रखी हैं पानी की कविताएँ

छाती में सहस्त्रदल खिलते हैं !


- बाबुषा कोहली



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