साहित्य चक्र

17 November 2024

कविता- यह कैसा यंत्र




अरे यह कैसा यंत्र है जिसे सबने हाथ में पकड़ा है,
समझ नहीं आ रहा कि, 
 हम इसे पकड़ा रहे है या इसने हमें जकड़ा है, 
भुला दिया है संसार ,भुला दिया सब कारोबार, 
इस कदर जकड़ रखा है सबको, 
कर दिया है बेकार, 

 इसे बनाने की हम हिस्ट्री नहीं समझ पाए ,
यह हमारे फायदे या नुकसान के लिए है, 
यह मिस्त्री नहीं समझ पाए,

परेशान है 'माही' भी देखकर- 
माता-पिता, भाई - बहन,
बच्चों के प्यार की जगह को भी यह यंत्र खींच ले गया, 
आज सबके हाथों में दिखाई देता है, 
यह 'मोबाइल' जीवन के सारे उद्देश्यों को छीन कर ले गया। 

                                  - रचना चंदेल 'माही'


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