साहित्य चक्र

21 November 2024

जागो स्त्रियों जागो




स्त्रियों इक बार अपने अधिकारों की बात करके तो देखो, 
सारे रिश्ते ना बेनकाब हो जाए तो कहना।

स्त्रियों इक बार अपने लिए थोड़ा सा जी के तो देखो, 
सारे करीबी लोग साथ ना छोड़ दें तो कहना।

स्त्रियों इक बार गलत के खिलाफ आवाज उठा कर तो देखो, 
आपके अपने ही ना मुंह मोड़ ले तो कहना।

स्त्रियों इक बार ना कह कर के तो देखो, 
आप के जहन में इक सवाल ना उभरे तो कहना।

स्त्रियों इक बार स्वतंत्र हो कर के तो देखो ढकोसलों से, 
रीति रिवाजों से, रूढ़िवादिता से, संस्कारों से, 
सारा समाज आपके खिलाफ़ ना हो जाए तो कहना।

- रजनी उपाध्याय, हैदराबाद

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