साहित्य चक्र

21 November 2024

बाल साहित्य कैसा हो ?



    सौभाग्य की बात है कि बाल साहित्य का सृजन आजकल बहुत ही होने लगा है  पर अफसोस यह है कि बालकों तक यह साहित्य पहुंच पाता है या नही । बाल साहित्य आजकल सभी भाषाओं में लिखा जाने लगा है साथ ही बाल साहित्य की आवशयकता को भी अंगीकार किया जाने लगा है। बाल मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बालकों के बौद्धिक व चारितत्रिक विकास में स्वस्थ व उत्तम साहित्य  की नितान्त आवश्यकता है।





 आम तौर पर ऐसा साहित्य जो मात्र बच्चों को केंद्र में रख कर लिखा जावे व बच्चों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए पू लिखा जाय तब ही ऐसा साहित्य ही वास्तव में बाल साहित्य की श्रेणी में सही माना जा सकता है। ऐसा साहित्य ज्ञानवर्धन के साथ साथ कल्पना शक्ति को भी बढ़ावा देता है।

अब प्रश्न ये उठता है कि बाल साहित्य कैसा हो ? इस बारे में अधिकतर बाल सर्जकों की राय है कि बालकों में अच्छे संस्कार , मानवीय मूल्य व नैतिक आचरण पैदा करने वाला साहित्य हो जो बच्चों की रुचि, आदत, आवश्यकता व विचारों को केंद्र में रख कर लिखा साहित्य ही बच्चों के ज्ञानवर्धन में सहायक होता है , तथा इसे बालक रुचि से ग्रहण कर सके।
 
बाल साहित्य कैसा हो ? इस बारे में सर्जन कर्ताओं, मनोवैज्ञानिकों विविध विद्वानों  के अपने-अपने विचार है कि बाल साहित्य रोचक एवं प्रेरक हो। कुछ लोगों का कहना है कि बालकों की बात को बालकों की भाषा मे लिखने से बालक जल्दी ग्रहण करता है। लेखक को बाल साहित्य लिखते समय बालक बन कर ही बाल मन के अनुसार लिखे तो वह बालक जल्दी ग्रहण कर लेता है

बाल साहित्य बालकों की जिज्ञासा को शांत कर तथा रुचियों में इजाफ़ा करे व अच्छे संस्कारों का निर्माण करे वही श्रेष्ठ बालोपयोगी होता है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि सरल,सहज व समझ आने वाला साहित्य हो जो साथ ही सामाजिक तथ्यों को प्रतिपादित करने वाला भी हो। अधिकांश सृजनकर्ताओं का कहना है  कि बाल साहित्य बालकों का मनोरंजन कर सके तथा मनोभावों , जिज्ञासाओं व कल्पनाओं के अनुरूप हो जिससे बालकों में आनन्द की अनुभूति हो व बालकों के सर्वांगीण विकास में सहायक हो।

विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में "बालकों का अर्धचेतन पेड़ों की तरह सक्रिय होता है। जैसे पेड़ में धरती से रस खींचने की शक्ति होती है वैसे ही बच्चों  के मन मे अपने चारों ओर के वातावरण से जरूरी खाद्य प्राप्त करने की क्षमता होती है।"

कुल मिलाकर बाल साहित्य बाल मनोविज्ञान को प्रतिबिंम्बित करने वाला व बालकों के व्यक्तितत्व का चहुंमुखी विकास करने वाला हो। बाल मन कोमल होता है अतः बाल साहित्य का सृजन करते समय सावधानी रखनी चाहिए, जिससे बालक का सन्तुलित विकास हो क्योंकि बच्चों का संसार बड़ों के संसार से सर्वथा भिन्न होता है। बाल साहित्य का सृजन करते वक़्त बालकों की रुचि, उनकी योग्यताएं , उम्र एवं प्रतिभा को भी ध्यान में रखना नितान्त आवश्यक है।

बाल साहित्य बालक के मानसिक धरातल पर उसकी भावनाओं के  स्तर के अनुरूप ही रचनाओं का रचाव किया जाना असरदार होता है। बाल साहित्य लिखते समय रचनाकार को  अतीत का स्मरण व वर्तमान की समझ हो तथा भविष्य की जिज्ञासा भी हो।

बाल साहित्य आत्मविश्वास भर सके तथा बालक भी स्वयं प्रेरित हो व नवीन चेतना को स्वतः स्फुरित करने वाला हो। हमारी संस्कृति की परंपरा को सुरक्षित रखने व बालक  मे पुरुषार्थ का महत्व जगाने में भी मददगार हो। बालक को बालक के स्तर का साहित्य उपलब्द्ध कराए ताकि बालक समय परिस्थितियों का मुकाबला कर सके।




आज का बालक क्या चाहता है ? सर्जन कर्ता को सर्जन करते समय सोचना होगा कि  ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में जहां बालक के सामने सारे गैजेट्स  खिलौनों की तरह पड़े हैं, शहरीकरण तेजी से गांवों की ओर कदम बढ़ा रहा है।

आज का बालक विज्ञान के उन सभी साधनों जैसे टी वी के चैनल ,मोबाइल व ईन्टरनैट से अपड़ैट है तो ऐसे में बाल साहित्य का स्वरूप ,बाल साहित्य  की सोच ,उनकी मन स्थिति औऱ उनके चिन्तन  को ध्यान में रखते हुए साहित्य सृजन होना चाहिये।

आज बाल साहित्य की विषय वस्तु समय के साथ साथ निरन्तर बदल रही है। आज का बालक अब उन परम्परा गत संसाधनों से हट कर ई मेल, वाट्सअप, वायरस, ब्लॉग, फेसबुक, पैन ड्राइव, लैपटाप, टेबलेट, कम्प्यूटर व बुलेट ट्रेन आदि में ज्यादा विश्वास करने लगा है।अब  आज का बालक गुड्डे-गुड्डी से हट कर साहित्य चाहता है।

आज के बालक की सोच परिपक्व हो चुकी है इसलिए रचना कर्मियों को बाल साहित्य का सृजन करते समय विषय वस्तु, पात्र, स्थान व बालको की मानसिकता के अनुरूप ही साहित्य सृजन करना होगा। आज बाल साहित्य लिखा तो जा रहा है पर बालकों तक पहुंच नही पा रहा है। अब बालकों को कैसे साहित्य परोसे जाएं ? इस पर गहन मनोवैज्ञानिक सोच की आवश्यकता है।

 बाल साहित्य का अब भविष्य उज्ज्वल है  राजस्थान के साहित्यकारों की सक्रियता व बाल साहित्य को ज्यादा महत्व देने के उद्देश्य से अपनी मांग तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत के समक्ष बाल साहित्य अकेडमी के गठन की रखी, सरकार ने बाल साहित्य एकेडमी की घोषणा की जिससे  बालकों को स्वस्थ बाल सर्जन व उपयोगी साहित्य सर्जन होने से बाल साहित्यकारों के मान सम्मान में इजाफा होगा। 

इस एकेडमी के बनने से बाल साहित्य का भविष्य उज्ज्वल है, योग्य बाल साहित्यकारों से एकेडमी सुशोभित होगी और इससे बाल  साहित्य की पोथियां आने वाले समय मे हर बालक-बालिका के हाथ मे होगी। ऐसा हुआ भी व वातावरण नज़र आने लगा। आज सभी अकादमियों में नवोदित / युवा साहित्यकारों को पोषित करने का कार्य हो रहा हैं।

आज विश्व बाल दिवस के अवसर पर हमारे देश की केंद्र सरकार व राज्य सरकारों से भी आग्रह है कि हमारे नन्हे मुन्ने नौनिहालों के लिए आधुनिक तकनीक से सुसंस्कारी साहित्य लेखन की दिशा में कार्य योजना बनाने के लिए अकादमियों का गठन तुरंत किया जाए तथा अकादमियों को प्रयाप्त बजट मुहैया कराया जाए।

आशा है बाल साहित्य जगत को समृद्ध साहित्य प्रदान करने की दिशा में साहित्यकार ,सरकार व प्रशासन को चाहिए कि बाल साहित्य से जुड़े सभी संगठन / संस्थाएं में आपसी समन्वय रखते हुए उच्च स्तर का साहित्य  सुदूर तक बैठे बालकों के हाथों तक पहुंच सके व बाल गोपाल संस्कारित हो ऐसी कामना के साथ।

                 
                                                    - मईनुदीन कोहरी


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