साहित्य चक्र

17 May 2019

कैसा था चंदा मामा

माँ

" चंद्र-सी शीतल तेरी गोदी
  बिंदु - सा लेटा हुआ हूँ मैं ।।
  तेरे नाम पर लगा चंद्र बिंदु
  अब समझ में आ गया माँ ।।"

किससे  सुनूँ माँ ,आज फिर वो लोरी
कैसा था चंदा मामा, कैसी थी चकोरी ।
तेरी याद में माँ ,आज आंखें भर आई
पिला दो मुझको माँ,वो नेह की कटोरी ।।

वो धनिए की चटनी, चूल्हे की रोटी 
कहती थी इससे स्वस्थ रहती किडनी
बडे प्यार से करती थी  मेरी चोटी
मुझे फिर से बांधो माँ, ला दूँ वो। डोरी ।।

झूला जो बांहों का तूने हंसकर झुलाया
खाया खुद नें माँ  ,मुझे पहले खिलाया ।
माँ तेरा आंचल है बहुत हीं चमत्कारी
मां, तेरे बिना यह दुनिया लगे मुझे कोरी ।।

तुम बस्ता उठाएं चली स्कूल तक मेरे साथ
मत खिलौने की चिंता कर खूब पढ मेरे लाल ।
पूजे तूने देवी-देवता सलामत रहें मेरे भूपेंद्र-गोपाल
आज भी हर अहसास में जिंदा है मेरी मैय्या मोरी ।।

                                                     ✍ गोपाल कौशल



No comments:

Post a Comment