कुछ मानव ऐसे हैं जो आसमान ओढकर
हंसते हंसते फर्श बिछाकर सोतें हैं
दूसरे है जो कालीन बिछाकर मखमल में भी
सिसकियां भर भर रोते हैं
क्या उनको नहीं लगती ठंड
जो प्लास्टिक की थैलीया बीनते हैं
क्या आप उनको ही लगती ठंड
जो हीटर के पास बैठ कर नोट गिनते हैं
वे कौन लोग है जो सड़कों के किनारे
फुटपाथ पर धोती होढ कर सोते हैं
वे गरीब बेसहारा मानसिक रोगी
घरेलू हिंसा से पीड़ित दुखी जरूर होते हैं
लेकिन वे बहुत मेहनती साहसी
कर्मठ ईमानदार लोग ही होते हैं
जिन को लूटने की परवाह नहीं
भगवान भरोसे सोते हैं
क्या हमने कभी उनके बारे में सोचा है कि
पर लोग सड़क किनारे फुटपाथ पर कैसे सोते हैं
क्योंकि उनके पास घर नहीं पैसा नहीं सहारा नहीं
पर बिल्कुल निर्धन बेसहारा आदमी होते हैं
उनके बच्चे भीख नहीं मांगे चोरी नहीं करें
भूख से नहीं मरेगा ऐसा करो इंतजाम
निशुल्क स्कूल चलाएं उन्हें वस्त्र दिलाएं
और खाने को कुछ नगद दे दो दाम
बनवाए उनके लिए सार्वजनिक स्थानों पर रेन बसेरा
जिससे मिल जाए उनको खुशनुमा एक सवेरा
जो इन लोगों के नहीं सुनता वह तो हैवान होता है
अरे पहचानो फुटपाथी मानव का दर्द
उनके लिए कोई तो आगे आओ बनकर मर्द।
कवि पंकज चन्देल 'प्रसून'
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