साहित्य चक्र

17 May 2019

मैं नारी हूँ


एक महान वरदान...
मैं नारी हूँ, 
मैं उड़ना चाहती हूँ,
बन्धन से मुक्त,
सबको बढ़ना चाहती हूं,
स्नेह बन्धन में।

हर आंगन को 
उपवन बनाकर, 
उसमें फूल 
खिलाना चाहती हूँ।

बहना चाहती हूँ,
पहाड़ों से उतरकर 
नदियों से निकलकर,
समतल मैदानों में।

जहां कोई रोके न टोके, 
अलमस्त होकर 
आगे बढ़ना चाहती हूँ।
हवा के साथ बहना चाहती हूँ।

छूना चाहती हूँ 
ऊँचे आसमान में 
उड़ते पझीयों को,
पत्तो को।

मुझे नही चाहिए ,
किसी का स्तम्भ 
खड़े होने के लिए।
मैं स्वम ही स्तम्भ हूँ।

मैं स्वम सिद्धा हूँ।
मैंने स्वम चुने है,
आकाश के सतरंगी सपनें।
उनमें देखी है 
जीवन की आशाएं।

मुझे निराशा की नही 
आशाभरी राहो पर चलना हैं।
मैं स्वम ईश्वर का 
दिया वरदान हूँ, 
इस सृष्टि का।

क्योकि मैं एक स्त्री हूँ।

                                                             ।।हेमा पांडे।।



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