साहित्य चक्र

05 May 2019

चांदनी रात भी काली स्याह

याद

आज जिंदगी कुछ विराम सी लगती है
चांदनी रात भी काली स्याह सी दिखती है

हर पल तेरी है याद सताती
हर पल तुझे मैं हूं पुकारती

आज तेरे घर की दूरी भी आसमां से लगती है
आज हर कोई ना जाने क्यों अजनबी सी लगती है

जिंदगी से ना कोई शिकवा है ना शिकायत है
फिर भी ना जाने क्यों यह मुझसे खफा सी दिखती है

आज जिंदगी कुछ वीरान सी लगती है 
चांदनी रात भी काली स्याह सी दिखती है

ना जाने क्यों अंजाना खौफ सा रहता है
तू ही बस मेरे ख्यालों में बस आता है

कहीं ये खौफ कभी मुजम ना हो जाए
 तू कहीं तू मुझसे दूर ना हो जाए

यह दूरी जो अब मुझे काफी करीब लगती है
ना जाने क्यों कभी कभी अजनबी सी लगती है

तेरे ख्यालों से ही खोते जाते हैं हम
बस तेरे, तेरे ही साथ हर पल रहते हैं हम

दूर होकर भी तुझसे न जाने क्यों करीब होते हैं
आज भी वह मुझसे काफी नजदीक होते हैं

फिर भी ना जाने क्यों आज की रात विरान सी लगती है 
चांदनी रात भी काली स्याह सी दिखती है 

 जो दे जाती है हवा झोंकों सा
वह भी "रश्मि' तेरे याद में बेकार सी लगती है

                                    निक्की शर्मा रश्मि


No comments:

Post a Comment