साहित्य चक्र

25 May 2019

किलकारी

गूँजी किलकारी 
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कब से आँखें तरस रही थी 
आज तुम्हें पाया है प्यारी!
बोल उठा मेरा घर आँगन 
पोती की गूँजी किलकारी।

कितने पूजा पाठ किये हैं 
तब जाकर तुमको है पाया,
कितनी मन्नत मानी हमने 
तब जाकर शुभ दिन आया।

आज कहूँगी सबसे सुन लो 
मेरे घर पोती खुशियाँ लाई,
नवरात्र सफल हो गये मेरे 
लक्ष्मी-दुर्गा रूप लिए आई।h

तू है मेरे जीवन की आशा 
तेरे सपने मेरा जीवन होंगें
उन्हें पूरा करने की उड़ान में 
एकजुट हो हम तेरे संग होंगे 

पढ़ा लिखा कर मेरी सोना!
तुझे शक्ति संपन्न बनाऊँगी,
तेरे सपनों की खातिर देखना 
मैं दुनिया से भी लड़ जाऊँगी।

आज गोद में लेकर तुझको 
मन का जैसे कमल खिला,
तेरा आना मानो जीवन में 
कोई ईश का वरदान मिला।

नित्य रात को सोने से पहले 
कहानियाँ तुझे सुनाऊँगी मैं!
सोने को जब रोयेगी गुड़िया!
लोरियाँ गा तुझे सुलाऊँगी मैं!

पढ़-लिख कर मेरी रानी बेटी 
समझ से अपना मार्ग चुनेगी 
निज श्रम से इच्छित सपनों को 
आगे बढ़ कर साकार करेगी।
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                                                 डा० भारती वर्मा बौड़ाई


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