"माँ"
तू ही यशोदा ,कौशल्या भी मेरी,
तुझ से मिलती है, सूरत भी मेरी।
तुमसे ही तो मैं हूँ रची,
बगिया में तेरे सुमन सी सजी।
धूप में भी तुम छाया जैसी,
शीत में मखमल धूप के जैसी।
लफ्ज़ों में ना कह मैं पाऊँ,
सुरम्य मूरत मैं कैसे बताऊँ?
अधरों से हर पल मुस्काये,
भीतर से तू नीर बहाए।
स्नेह ममता का तू है सागर
नेह बरसाती दया का सागर।
दुख के बादल जो हम पर छायें,
आँचल में तिरे सुकूँ हम पायें।
अँधेरों में दीपक बन जाये,
जब घनियारी रात सताये।
तू ही गुरु,सखी तू मेरी,
तुझ में दुनिया पिरोयी है मेरी।
इक बार फिर वो बचपन लौटा दे,
प्रेममयी वो चूरी खिला दे।
वियोग तेरा कभी सह नहीं पाऊँ,
जनम-जनम तुझे शीश नवाऊँ।
सीमा चोपड़ा
No comments:
Post a Comment