भूल स्वीकार कर
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मकरन्द पान करते भ्रमर
इठलाती-मँडराती तितलियाँ
कुहू-कुहू की टेर लगाती कोयलिया
प्रेम आलिंगन करती गौरैया
अब ये सब कहाँ चले गए...
फोटो- दीपक कोहली |
सूने-सूने हो गये गाँव
मिलती नहीं बरगद वाली छाँव
चुप हो गया पक्षियों का कलरव
भरते नहीं चौकडियाँ मृग-खरगोश
हरियाली मिटती जा रही
धरा नित-नित बंजर हो रही
विकास नाम का चल रहा खंजर
कंकरीट के जंगल फैल गये चहुँओर
पेड़-पौधे लग रहे हैं गमलों में
ऐसे तो पर्यावरण नहीं बचेगा
प्लास्टिक के फूलों से खुशबू नहीं मिलेगी
प्राणवायु ऑक्सीजन भरपूर नहीं मिलेगी
ए मनुज! भूल स्वीकार कर
प्रकृति के साथ मत अन्याय कर
अगर पर्यावरण स्वच्छ रहेगा
तो हर प्राणी का अस्तित्व रहेगा ।
- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
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