साहित्य चक्र

05 May 2019

श्रृंगार करूँ

(अर्द्बनारिश्वर)

नारी सा !
श्रृंगार करूँ
या पुरुषों सा 
व्यवहार करूंँ  

न स्त्री की कोख 
न पुरुषों का पौरुष
पहन कर साड़ी
बजाकर ताली
नाचूँ गाऊं

मन ही मन रोकर
खुशियों के गीत सुनाऊं
देके बधाई/ नेग पाऊं
किन्नर,हिजड़ा 
मंगलामुखी कहलाऊं 

पीड़ा अपनी 
किसको बतलाऊँ
अर्द्बनारीश्वर रुप में
कैसे जी पाऊं

                             ।।डॉ. रचनासिंह रश्मि।।


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