(अर्द्बनारिश्वर)
नारी सा !
श्रृंगार करूँ
या पुरुषों सा
व्यवहार करूंँ
न स्त्री की कोख
न पुरुषों का पौरुष
पहन कर साड़ी
बजाकर ताली
नाचूँ गाऊं
मन ही मन रोकर
खुशियों के गीत सुनाऊं
देके बधाई/ नेग पाऊं
किन्नर,हिजड़ा
मंगलामुखी कहलाऊं
पीड़ा अपनी
किसको बतलाऊँ
अर्द्बनारीश्वर रुप में
कैसे जी पाऊं
।।डॉ. रचनासिंह रश्मि।।
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